मेले की भगदड़, प्रशासन और आम आदमी ........................... आलेख .............................. डा. रजनीश श्रीवास्तव
प्रयागराज में चल रहे महाकुम्भ में 29 जनवरी को मध्यरात्रि में मची भगदड़ के बाद तरह – तरह की बातें जन मानस में असमंजस पैदा कर रही हैं। इस बारे में विभिन्न वृहद मेलों तथा उज्जैन में आयोजित सिंहस्थ में सेवाएं दे चुके डा. रजनीश श्रीवास्तव का आलेख मेले की भगदड़, प्रशासन और आम आदमी भ्रांतियों को दूर करने में सहायक सिद्ध होगा।
मेले की भगदड़, प्रशासन और आम आदमी
- डा. रजनीश श्रीवास्तव
अभी कुछ दिन पहले प्रयागराज के महाकुंभ मेले में हुई एक छोटी सी भगदड़ और अग्निकांड की घटना को लेकर प्रिंट मीडिया और सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर बहुत सी चर्चाएं और अफवाहें चल रही हैं।
मैं मैहर के शारदा देवी मंदिर के दोनों नवरात्रि के मेलों, चित्रकूट धाम के दीपावली के मेलों और उज्जैन के सिंहस्थ मेले की प्रशासनिक व्यवस्था सम्बंधित किये गए कार्य के अनुभव के आधार पर कुछ बिंदुओं पर चर्चा कर रहा हूँ।
महत्वपूर्ण बात यह है कि बहुत से लोग मोबाइल से विभिन्न वीडियो रिकॉर्डिंग कर वीडियो वायरल कर रहे हैं जिसमें आम आदमी कानून व्यवस्था एवं मेले की व्यवस्थाओं का एक्सपर्ट बनकर व्यवस्था की खामियों को बताकर अपनी राय दे रहे हैं।
किसी भी मेले में जहां बहुत ज्यादा लोगों के आने की संभावना रहती है, उस मेले से संबंधित व्यवस्थाएं मेला शुरू होने के काफी महीनों पहले से शुरू कर दी जाती है किंतु इन सब तैयारियों के बारे में आम आदमी सोच और समझ भी नहीं सकता।
किसी भी मेले में लोग चारों तरफ भीड़ के बीच में खाली पड़ी चौड़ी खुली सड़कों को या खाली रास्तों को देखकर यही मानकर चलते हैं कि यह वीआईपी के लिए रास्ता बनाया गया है। जबकि वास्तविकता ऐसी नहीं होती है।
संपूर्ण मेला क्षेत्र में मूलभूत सुविधाओं को तत्काल उपलब्ध कराना होता है। उसके लिए अगर सुरक्षित खुला रास्ता नहीं छोड़ा जाएगा तो किसी भी अनहोनी में कार्य करना बहुत मुश्किल होगा।
इस खुले रास्ते को पुलिस बल के ड्यूटी पर पहुंचने के लिए/ आग लगने पर फायर ब्रिगेड पहुंचने के लिए/ किसी व्यक्ति के बीमार होने पर चिकित्सा सहायता के लिए एंबुलेंस पहुंचने के लिए/ सफाई व्यवस्था के लिए सफाई कर्मचारी और मेला क्षेत्र में निकलने वाले कचरे के निपटान के लिए/नल जल व्यवस्था के लिए/आश्रम और भोजनशाला में खाद्यान्न पहुंचाने के लिए यह रास्ते बनाए जाते हैं। किंतु उन रास्तों के आसपास से निकलने वाली जनता यही समझती है कि यह रास्ते वीआईपी के आने जाने के लिए बनाए गए हैं।
इसके अतिरिक्त किसी भी मेले में मेला क्षेत्र में बहुत से स्थान ऐसे रहते हैं जहां पर आदमी आवागमन कर सकता है किंतु अगर किसी एक ही स्थान पर सभी व्यक्ति आना चाहे तो यह संभव नहीं है।
उदाहरण के लिए संगम का क्षेत्र एक छोटा सा क्षेत्र है जहां पर एक समय में कुछ हजार लोग ही पहुँच कर स्नान कर सकते हैं किंतु यदि महाकुंभ मेले में आने वाला हर व्यक्ति वहीं पर स्नान करने का सोचेगा तो यह संभव नहीं है।
इसीलिए हर कुंभ मेले में बहुत से घाट अलग - अलग जगहों पर बनाए जाते हैं ताकि नदी के किनारे आने वाली आम जनता अलग -अलग जगह बने हुए घाट पर स्नान कर सके और भीड़ का व्यवस्थित तरीके से प्रबंधन किया जा सके। प्रयागराज में संगम स्थल के अतिरिक्त फाफामऊ, रसूलाबाद, दशाश्वमेध घाट, नागवासुकि मंदिर के पास, अरैल, नैनी व गंगा नदी की सभी धाराओं के दोनों तरफ स्नान करने के लिए सैकड़ों घाट बनाये गए हैं।
इसके साथ ही मेले में हर व्यक्ति को यह विचार करना चाहिए कि अगर आप किसी एक स्थान पर पहुंच गए हैं तो वहां से दर्शन स्नान या जिस भी कार्य के लिए आप पहुंचे हैं तुरंत स्नान कर वहां से बाहर निकल जाएं ताकि मेले में आने वाला दूसरा व्यक्ति वहां पहुंच सके और उसे भी स्नान करने का मौका मिल सके।
किंतु होता यह है कि जो व्यक्ति सबसे आगे पहुंच गया होता है वह सबसे अधिक से अधिक समय तक वहां रुके रहना चाहता है। जैसे अगर आप संगम के पास या किसी घाट के पास सुबह 4:00 बजे पहुंच गए हैं तो 4:00 बजे ही स्नान कर वहां से आगे बढ़ना चाहिए ना कि वहां रुक करके इस बात का इंतजार करें कि हम सुबह 6:00 बजे के अमृत मुहूर्त में ही स्नान करेंगे और उसके बाद अखाड़े के साधुओं का स्नान भी देखेंगे।
कई बार स्थित यह बनती है कि अगर पुलिस बल उनको आगे बढ़ने के लिए नहीं कहे तो वह आराम से घण्टों तक वहीं बने रहेंगे।
इसके अतिरिक्त मेले में पुलिस प्रशासन जब कहीं पर किसी को रोकता है तो उसको आम जनता पुलिस की अनावश्यक दखलंदाजी मानकर उसका उल्लंघन करना चाहती है जबकि पुलिस और प्रशासन वायरलेस सेट से एक दूसरे से जुड़े रहते हैं और उनको मेला क्षेत्र के प्रत्येक क्षेत्र की भीड़ की जानकारी उपलब्ध होती रहती है कि कहां पर भीड़ ज्यादा हो गई है कहां पर भीड़ रोकना है और कहां पर भीड़ कम है।
किसी भी मेले की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि वहां से दर्शन या स्नान कर व्यक्ति मेला क्षेत्र से कितना जल्दी बाहर आना शुरू हो जाए क्योंकि जैसे ही मेला क्षेत्र से व्यक्ति बाहर आएगा मेले में आने वाले दूसरे व्यक्ति के लिए मेला क्षेत्र में खाली जगह उपलब्ध होती जाएगी। किंतु यदि पहले से पहुंचे हुए लोग उस मेला क्षेत्र को नहीं छोड़ेंगे तो बाहर से आने वाली आम जनता मेला क्षेत्र में नहीं पहुंच पाएगी और वह धक्का मुक्की कर आगे बढ़ने के लिए पुलिस व बैरिकेट पर दबाव बनाने लगेगी। जिससे भगदड़ की स्थिति बनेगी।
अभी एक वीडियो दिखा था जिसमें कुछ लोग यह कह रहे थे कि देखिए.... यहां पर सामने बहुत से जूते चप्पल आदि पड़े हुए हैं। इनको लेने कोई नहीं आया इसका मतलब जिनके जूते चप्पल पड़े हुए हैं। उन सबकी मृत्यु हो गई है। आप इस पर विचार करिए कि किसी मेले में गए हैं और कोई भगदड़ मच जाए या बिना भगदड़ के ही किसी जगह पर आपके जूते चप्पल छूट जाए और आप आगे बढ़ गए हों तो क्या भीड़ में वापस पीछे जाकर के अपने जूते चप्पल ढूंढ़ कर उठाएंगे। या कोई सामान अगर आपका छूट गया है जो बहुत कीमती नहीं है तो उसको ढूंढने में आप अपना समय खराब करते हैं या आप तुरंत अपने घर की ओर रवाना होंगे।
इसके अतिरिक्त कुछ लोग बार-बार इस बात पर जोर डालते हैं कि इस भगदड़ में मरने वाले व्यक्तियों की संख्या बहुत अधिक है जो नहीं बताई जा रही है जबकि वास्तविकता में ऐसा नहीं होता है। जो भी स्थितियां होती हैं, वह सबको मालूम रहती हैं। मगर कुछ लोग इन बातों को बढ़ा चढ़ा कर भ्रम की स्थिति पैदा कर अफवाहें फैलाते रहते हैं। उन्हें अफवाह फैलाने में ही आनंद आता है।
कुछ लोग अपने राजनीतिक लाभ के लिए भी तरह-तरह की भ्रांतियां और अफवाह पैदा करते हैं।
मेले में या मंदिर में सबसे आगे खड़ा व्यक्ति हमेशा यह सोचता है कि अब मैं जितना अधिक से अधिक समय यहां पर खड़ा रह सकूं वही अच्छा रहेगा। भले ही उसके पीछे लोग घंटों तक इंतजार करते रहे और इसलिए भी मेलों में भगदड़ मचती है।
यदि मेले में भीड़ दर्शन, स्नान आदि करके सामान्य रूप से कम से कम समय में आगे बढ़ती जाए तो दूसरों को भी मौका मिलता रहेगा और भगदड़ जैसी स्थिति नहीं बनेगी।
एक वीडियो में एक व्यक्ति यह कह रहा है कि यहां पर लाखों लोगों की भीड़ है और उनकी व्यवस्था के लिए बहुत कम पुलिस के जवान लगे हैं। वास्तविकता में किसी भी मेले में हर व्यक्ति के पीछे एक पुलिस का जवान नहीं लगाया जाता है। फिर भी कानून व्यवस्था संभालने के लिए पर्याप्त पुलिस बल और वालंटियर्स लगाए जाते हैं।
एक सज्जन कह रहे हैं कि देखिये कितने लोग मर गए। अब तो कुंभ मेले में सूतक लग गया है।
एक वीडियो में कुछ लोग यह कह रहे हैं कि मुख्यमंत्री को इस्तीफा दे देना चाहिए। उनकी बात से ऐसा लगता है कि उन वक्ता को ही मुख्यमंत्री बना दिया जाना चाहिए।
जो लोग अपने घर परिवार में किसी कार्यक्रम में 100 - 200 लोगों की व्यवस्था ठीक ढंग से नहीं कर पाते वह कुंभ मेले में जिसमें करोड़ों लोग आ रहे हैं उनकी व्यवस्था में खामियां निकाल कर सही व्यवस्था करने की सलाह दे रहे हैं। इसलिए किसी भी व्यवस्था में दोष निकालने के पहले उस व्यवस्था के सभी पहलुओं पर विचार करना आवश्यक है।
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डा. रजनीश श्रीवास्तव, अपर कलेक्टर, इंदौर