आज, 04 जून को हो रही मतगणना और आ रहे परिणाम से सत्तारूढ़ दल में थोड़ी मायूसी है तो विपक्षी दल उत्साहित तो हैं लेकिन सरकार बनाने की उनकी मंशा पूरी होती है या नहीं अगले कुछ दिनों में साफ हो जायेगा. चुनाव परिणाम से यह सिद्ध हो गया है कि ईवीएम भरोसेमंद है. ईवीएम बेदाग है. इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) के सिर पर हार का ठीकरा फोड़ने वालों ने आज स्वत: ही मान लिया कि ईवीएम से कोई छेड़छाड़ नहीं हुई है. हालाकि अभी तक किसी भी दल ने ईवीएम पर कोई टिप्पणी नहीं की है. हो सकता  है आरोप लगाने वाले जानबूझकर इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हुये हैं. लेकिन यह तो साफ हो गया है कि करीब सौ करोड़ मतदाताओं के मतदान के लिये ईवीएम ही एकमात्र विश्वसनीय विकल्प है. चुनाव प्रक्रिया से जुड़े डा. रजनीश श्रीवास्तव ने ईवीएम की कार्यप्रणाली पर विस्तार से जानकारी दी है. यह आलेख निश्चित ही पाठकों के संदर्भ के लिये उपयोगी सिद्ध होगा. ( मधुकर पवार, प्रधान सम्पादक... www.dailynewshub.net )   

 

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अंतत: ईवीएम अग्निपरीक्षा में बेदाग होकर निकली

ईमानदार ईवीएम की कहानी : डा. रजनीश की जुबानी  

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ईवीएम क्या है?

 

1977  में निर्वाचन आयोग ने पहली बार इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन की परिकल्पना की थी।

 

 उसके बाद वर्ष 1980 में पहली बार ईसीआईएल , हैदराबाद और बीईएल,बैंगलोर द्वारा इस मशीन का डिमांसट्रेशन किया गया था।

 

1982 में पहली बार केरल में एक विधानसभा क्षेत्र परुर विधानसभा के चुनाव में मात्र 50 मतदान केंद्रों पर ईवीएम का प्रयोग पहली बार किया गया था।

 

  सरकार के ही सार्वजनिक उपक्रम भारत इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड BEL बैंगलोर और इलेक्ट्रॉनिक कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया ECIL, हैदराबाद ने ईवीएम का निर्माण करना प्रारंभ किया।

 

वर्ष 1988 में लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम में यह संशोधन हुआ था कि भविष्य में होने वाले निर्वाचन ईवीएम द्वारा कराए जाएंगे।

 

आयोग ने चरणबद्ध तरीक़े से इनका प्रयोग सभी विधानसभा और लोकसभा चुनावों में प्रारंभ कर दिया।

 

इसमें एक बैलट यूनिट और एक कंट्रोल यूनिट होती है।

सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद से वीवीपीएटी अर्थात वोटर वेरिफाएबल पेपर ऑडिट ट्रेल  को भी इसमें जोड़ दिया गया है , जिसमें बैलेट यूनिट का बटन दबाते ही चुनाव चिन्ह और अभ्यर्थी का नाम डिस्प्ले होता है और एक पर्ची प्रिंट होकर वीवीपीएटी के बॉक्स में गिरकर एकत्र हो जाती है जो मतदाता को मतदान करते समय दिखाई भी देती है।

 

ईवीएम एक ऐसी मशीन है जिसमें इंटरनेट/वाय फ़ाय/ब्लूटूथ आदि से कोई कनेक्शन नहीं हो सकता है। इसके अंदर ऐसा कोई भी पुर्ज़ा नहीं है जो इसे किसी अन्य माध्यम से किसी अन्य मशीन या डिवाइस को कनेक्ट कर सके। इसी कारण इसे बाहर से हैक नहीं किया जा सकता। किसी को कोई संदेह ना रहे  इसलिए इसे बिजली के तार से जोड़कर चलाने के स्थान पर बैटरी से चलाया जाता है।

 

इसके साथ ही यह भी विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि निर्माणकर्ता कंपनी द्वारा जो सॉफ्टवेयर इसमें इंस्टॉल किया जाता है उसे बाद में किसी भी स्टेज पर अपडेट या उसमें कोई बदलाव नहीं किया जा सकता।

ईवीएम और वीवीपीएटी के निर्माण के लिए भारत निर्वाचन आयोग निर्माणकर्ता कंपनी को आदेश जारी करता है।

 

बंगलौर/हैदराबाद से संबंधित जिले के जिला निर्वाचन अधिकारी के गोदाम/वेयरहाउस तक ईवीएम पहुंचाने की जिम्मेदारी सम्बंधित जिले के जिला निर्वाचन अधिकारी की ही होती है। इसके लिए संबंधित जिले के जिला निर्वाचन अधिकारी अपने जिले से एक बंद कंटेनर जिसमे जीपीएस लगा हो,एक वरिष्ठ कार्यपालिक मजिस्ट्रेट उसके साथ कुछ कर्मचारी, राजस्व निरीक्षक, पटवारी एवं अन्य कर्मचारियों की टीम तथा सशस्त्र पुलिस बल सुरक्षा के लिए रवाना किया जाता है ।

 

जब यह दल बेंगलुरु/ हैदराबाद से ईवीएम और वीवीपीएटी लेकर संबंधित जिले के लिए वापस चलना प्रारंभ करता है तो उस समय रास्ते में पड़ने वाले सभी प्रदेशों के सभी जिलों के पुलिस महकमे को इसकी जानकारी निर्वाचन आयोग द्वारा  दी जाती है कि ईवीएम का मूवमेंट हो रहा है ।पूरे रास्ते में सुरक्षा की जिम्मेदारी संबंधित जिले के पुलिस अधीक्षक की भी होगी।

 

 जब यह ईवीएम संबंधित जिले के वेयरहाउस में पहुंचती है तो उसकी सूचना पहले से सभी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों को लिखित में दी जाती है और वेयरहाउस खोलने के बाद मशीनों को वेयरहाउस में रखा जाता है। इस पूरी कार्रवाई अर्थात वेयरहाउस का ताला खोलने से लेकर ताला बंद होने तक वीडियोग्राफी भी कराई जाती है और पंचनामा बनाया जाता है। सभी मशीनों के स्पेसिफिक नंबर और बारकोड होते हैं जिन्हें सॉफ्टवेयर में अपलोड किया जाता है । और वह मशीन अगर कभी किसी अन्य जिले को भेजी जाएगी तो सॉफ्टवेयर के वेयरहाउस से भी उस मशीन को सम्बंधित जिले के जिला निर्वाचन अधिकारी के वेयरहाउस को ट्रांसफर करनी पड़ती है।

 

ईवीएम किसी भी अन्य जगह या बाजार में ना तो मिलती है और ना ही बन सकती है।

 

 राजनीतिक दलों को लिखित सूचना,सुरक्षा और वीडियो ग्राफी और पंचनामा हर बार वेयरहाउस खोलने बन्द करने पर या ईवीएम के जीपीएस सिस्टम युक्त वाहन से परिवहन के समय अनिवार्य है।जिसका पालन सभी जिला निर्वाचन अधिकारी के द्वारा किया जाता है।

 

 इसके बाद निर्वाचन की घोषणा से लगभग 3 माह पूर्व निर्वाचन की तैयारी के लिए वेयरहाउस में रखी हुई ईवीएम की प्रथम लेवल की चेकिंग जिसे एफएलसी कहते हैं, की जाती है ।

 

इस एफएलसी को करने की सूचना सभी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों को लिखित में दी जाकर वीडियोग्राफी करते हुए वेयरहाउस खोला जाता है और एक एक कर सभी मशीनों को चेक किया जाता है। मशीन काम कर रही है या नहीं यह मशीन निर्माणकर्ता कंपनी के इंजीनियर चेक करते हैं और उसे पेपर सील लगाकर सील कर दिया जाता है।इस सील पर निर्माणकर्ता कंपनी के संबंधित इंजीनियर, जिला निर्वाचन अधिकारी या उसके प्रतिनिधि के हस्ताक्षर तथा एफएलसी के समय उपस्थित मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के अभिकर्ताओं के हस्ताक्षर किए जाते हैं।

 

खराब मशीन को अलग हटा दिया जाता है और एफएलसी खत्म होने के पश्चात निर्माणकर्ता कंपनी को वह मशीन पूरी सुरक्षा के साथ भेज दी जाती है ।

 

प्रथम लेवल की चेकिंग के दौरान बैलट यूनिट  कंट्रोल यूनिट से जोड़ी जाती हैं और बैलट यूनिट में डमी वैलेट पेपर लगाकर सभी मशीनों में मॉक पोल किए जाते हैं। तथा एफएलसी समाप्त होने के पश्चात सभी मशीनों की सूची निर्वाचन आयोग को भेजी जाती है और मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों को भी यह सूची उपलब्ध कराई जाती है।

 

मतदान केन्द्र की संख्या से लगभग 125 से 135 प्रतिशत ईवीएम/वीवीपीएटी की एफएलसी की जाती है और उनके नंबरों को कंप्यूटर सॉफ्टवेयर में मोबाइल एप से बारकोड स्कैन कर डाला जाता है।

 

नाम निर्देशन पत्र अभ्यर्थियों द्वारा जिस समय जमा कराए जा रहे होते हैं इस दौरान  आयोग द्वारा प्रदाय किए गए सॉफ्टवेयर से कंप्यूटर द्वारा प्रथम रेंडमाइजेशन के द्वारा इन मशीनों में से यह तय किया जाता है कि किन मशीनों को इस निर्वाचन में किस विधानसभा क्षेत्र में उपयोग किया जाएगा और किन  मशीनों को उपयोग नहीं किया जाएगा।

 

 उपयोग की जाने वाली मशीनों को अलग रखा जाता है और निर्वाचन में उपयोग न की जाने वाली मशीनों को अलग रखा जाता है।

 

मतदान कर्मियों के प्रशिक्षण एवं मतदाताओं की जागरूकता के लिए पृथक से ईवीएम और  वीवीपीएटी निर्धारित रहती हैं, जिन्हें सिर्फ प्रशिक्षण और मतदाता जागरूकता के लिए उपयोग में लाया जाता है।

 

उसके पश्चात नाम निर्देशन पत्र भरने  के बाद मतपत्र छपते हैं और मतपत्र छपने के बाद मत पत्र को बैलट यूनिट में लगाया जाता है ।

 

अब निर्वाचन आयोग द्वारा उपलब्ध कराए गए कंप्यूटराइजड सॉफ्टवेयर से द्वितीय रेंडमाइजेशन किया जाता है, जिसमें यह सुनिश्चित होता है कि किस क्रमांक की ईवीएम और किस क्रमांक की वीवीपीएटी किस मतदान केंद्र क्रमांक पर जाएगी और कौन सी ईवीएम और वीवीपीएटी रिजर्व में रखी जाएगी। इस सूची की कॉपी भारत निर्वाचन आयोग को भेजी जाती है और सभी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों को तथा निर्वाचन लड़ने वाले सभी अभ्यर्थियों को इसकी एक प्रति दी जाती है।

 

कमीशनिंग के दौरान बैलट यूनिट में मत पत्र लगाने  के बाद बैलट यूनिट को भी सील कर दिया जाता है।

 

 मतपत्र में चुनाव लड़ने वाले अभ्यर्थियों के नाम लिखने का सीक्वेंस अल्फाबेटिकल होता है और पहले मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के प्रत्याशियों का नाम अल्फाबेटिकल (हिंदी वर्णक्रम अनुसार)क्रम में रखा जाता है उसके बाद निर्दलीय अभ्यर्थियों के नाम रखे जाते हैं ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि बैलट यूनिट के प्रथम बटन से लेकर आखिरी बटन तक प्रत्येक विधानसभा में किसी पार्टी विशेष के अभ्यर्थी का नाम नहीं हो जाए अर्थात अभ्यर्थी के नाम के आधार पर विभिन्न विधानसभाओं में विभिन्न पार्टियों के लिए बटन का क्रमांक भिन्न-भिन्न होगा।

 

 निर्वाचन में उपयोग होने वाली सभी मशीनों में से कमीशनिंग के दौरान 5 प्रतिशत मशीन और वीवीपीएटी जो अभ्यर्थियों के द्वारा या उनके प्रतिनिधि द्वारा सुझाई गई होती हैं  उन मशीनों से मॉकपोल कर लगभग 1000 वोट डाले जाकर मशीनों के परिणाम का

मिलान वीवीपीएटी की पर्चियों से किया जाता है।जो शत प्रतिशत सही होता है।

 

 पीठासीन अधिकारियों द्वारा मतदान के दिन मतदान प्रारंभ करने के डेढ़ घंटे पूर्व मौके पर विभिन्न प्रत्याशियों के पोलिंग एजेंट की उपस्थिति में 50 वोट डालकर मॉक  पोल किए जाते हैं उसके बाद उसकी गिनती की जाकर परिणाम का मिलान वीवीपीएटी की पर्चियों से  किया जाता है। यदि सब कुछ सही रहता है तो ही मतदान की प्रक्रिया प्रारंभ की जाती है। कोई भी त्रुटि होने पर जोनल अधिकारी या निर्वाचन अधिकारी के प्रतिनिधि अधिकारी द्वारा खराब मशीन बदल कर दूसरी मशीन दी जाती है और स्ट्रांग रूम में शाम के समय मशीन जमा करते समय बदली हुई खराब मशीन और नई मशीन दोनों ही पीठासीन अधिकारी द्वारा जमा की जाती है ।

 

ईवीएम स्ट्रांग रूम में जमा होने की सूचना सभी अभ्यर्थियों को  लिखित में दी जाती है ताकि वह अथवा उनके इलेक्शन एजेंट स्ट्रांग रूम पर उपस्थित रहे और अपने सामने स्ट्रांग रूम सील करवा सकें। सभी जगह वीडियोग्राफी होती है और स्ट्रांग रूम में अंदर की ओर कोई भी दरवाजा या खिड़की या रोशनदान नहीं होता सिर्फ एक दरवाजा दिया जाता है जिसे ताला लगाने के बाद पेपर सील भी लगाकर बन्द कर दिया जाता है, और सामने की ओर सशस्त्र बल जो केंद्रीय पुलिस बल का होता है वह 24 घण्टे पहरे पर रहता है और सीसीटीवी कैमरे से निगरानी की जाती है जिसको स्ट्रांग रूम से कुछ दूरी पर बैठे हुए अभ्यर्थियों के एजेंट टीवी स्क्रीन पर 24 घण्टे देख सकते हैं।

 

  स्ट्रांग रूम की मतगणना की समाप्ति तक विडियो कैमरे से निगरानी रहती है और सभी अभ्यर्थियों को लिखित में सूचना दी जाती है कि मतगणना के दिन कितने बजे स्ट्रांग रूम खोला जाएगा उसके लिए निश्चित समय पर सभी अभ्यर्थी स्ट्रांग रूम के दरवाजे पर पहुंचते हैं वहां पर उन्हें पेपर सील और सील किए हुए ताले दिखाए जाते हैं। वीडियो रिकॉर्डिंग की जाती है उसके बाद ताले खोले जाते हैं और पंचनामा बनाने के साथ अंदर से मशीन निकालकर मतगणना की टेबल पर पहुंचाई जाती है।

 

मतगणना के दौरान प्रत्येक टेबल पर एक-एक मतदान केंद्र की कंट्रोल यूनिट लाई जाती है और उस कंट्रोल यूनिट की सील सामने बैठे मतगणना एजेंट को दिखाई जाती है और उनकी संतुष्टि के बाद कंट्रोल यूनिट के रिजल्ट को डिस्प्ले पर दिखाया जाता है और उसको नोट किया जाता है। मतगणना एजेंट भी इस पूरी प्रक्रिया को अपने सामने देखते हैं और नोट करते हैं मतगणना की पूरी प्रक्रिया सीसीटीवी और वीडियो रिकॉर्डिंग से सुरक्षित की जाती है ताकि किसी तरह की गड़बड़ी नहीं हो सके।

 

प्रत्येक राउंड की मतगणना खत्म होने के बाद यदि कोई आपत्ति होती है तो उसका निराकरण किया जाता है और जब सभी मतदान केंद्र  की कंट्रोल यूनिट की गणना खत्म हो जाती है तो मतदान केंद्रों की संख्या की पर्ची का लॉट डालकर 5 मतदान केंद्र की पर्चियां के लॉट निकाले जाते हैं। जो मतदान केंद्र क्रमांक की पर्चियां निकलती है, उन मतदान केन्द्रों की वीवीपीएटी लाकर उसमें पड़ी हुई पर्चियां की गिनती की जाती है। इसके पश्चात इन पर्चियां की संख्या और कंट्रोल यूनिट से की गई गणना का मिलान किया जाता है इसमें कोई भिन्नता नहीं आनी चाहिए और कोई भिन्नता आती भी नहीं है।

 

 इसके पश्चात परिणाम घोषित किया जाता है।

 

 मतगणना के पश्चात ईवीएम को वेयरहाउस में ले जाने के लिए सभी अभ्यर्थियों को लिखित में सूचना दी जाती है और इस बार  निर्वाचन में भारत निर्वाचन आयोग ने यह निर्देश दिए थे कि मतगणना के तुरंत बाद ईवीएम जिला निर्वाचन अधिकारी के वेयरहाउस में जमा कर दी जाए ।

इस पूरी प्रक्रिया की वीडियो ग्राफी और सुरक्षा के पूरे उपाय करने के बाद ही किया जाए ।

 

सभी स्तर पर मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों/प्रत्याशियों को लिखित सूचना देते हैं और वीडियो ग्राफी किया जाना और पंचनामा बनाया जाता है।

 

कोई भी पक्ष जब हार का सामना करता है, तो वह ईवीएम को अपनी हार के कारणों के लिये बहाने के तौर पर प्रयोग करता है। आज के विपक्षी दल जब  सरकार में थे तब उन्हें ईवीएम पर  पूरा भरोसा था।

 

इसी ईवीएम से विभिन्न राजनीतिक दलों के अभ्यर्थी जीतते और हारते हैं।

 

एक जिले में सभी सीट सत्ता पक्ष की पार्टी को मिल रही है तो दूसरे जिले में सभी सीट विपक्ष की दूसरी पार्टी को मिल रही है।

 

ईवीएम पर उंगली उठाने वाले के परिवार के सदस्य उसी ईवीएम से जीत हासिल कर रहे हैं,और इसी ईवीएम से जीतकर एक राज्य में एक दल सरकार बना रहा है तो दूसरे राज्य में दूसरा दल सरकार बना रहा है।

 

 कुछ  विपक्षी राजनीतिक नेताओं ने ईवीएम को हैक करने की चुनौती दी थी। भारत निर्वाचन आयोग ने ईवीएम सामने  रखकर सारे राजनीतिक दलों को चुनौती दी थी कि वे अपने बड़े से बड़े इलेक्ट्रॉनिक एक्सपर्ट को लेकर आएँ, और जितना भी समय लगे, इस मशीन को हैक करके दिखाएं।किन्तु  कोई भी व्यक्ति सामने नहीं आया।आज भी कोई सामने नहीं आ रहा है।

 

उत्तर भारत के अनेक क्षेत्रों में पहले के समय बूथ कैप्चरिंग होती थी।इन्हीं क्षेत्रों में चुनाव के समय हिंसक घटनाओं की कमी नहीं थी।

 

ईवीएम से एक मिनट में 3 या 4 से अधिक वोट नहीं डाले जा सकते हैं।अर्थात 1 घण्टे में 180 से 240 वोट डाल सकते हैं। अतः बूथ कैप्चरिंग सम्भव नहीं है।

 

मशीनों से काउंटिंग में कोई भी मत इनवेलिड की श्रेणी में नहीं होता है जैसा कि मत पत्रों से होने वाले चुनाव में हो जाता था और विवाद का कारण बनता था।

 

इसके अतिरिक्त मतगणना जो पहले 36 से 40 घंटे तक चलती थी वह अब लगभग 6 से 7 घंटे के अंदर समाप्त होने लगती है।

 

विचारणीय प्रश्न

 

1,जब एक घर में दो भाई आपस में एक मत नहीं होते तो निर्वाचन की इस उपरोक्त प्रक्रिया में एक निर्वाचन क्षेत्र में लगे हुए विभिन्न विचारधारा के हजारों व्यक्ति एक मत होकर कैसे धांधली कर सकते हैं।

 

 2, जब ईवीएम और वीवीपीएटी के मूवमेंट या वेयरहाउस या स्ट्रांग रूम खोलने के प्रत्येक पल पर सभी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों को और निर्वाचन लड़ रहे अभ्यर्थियों को लिखित में सूचना देना, पंचनामा बनाना, वीडियोग्राफी करना,सीसीटीवी रेकॉर्डिंग, सशस्त्र सुरक्षा बल लगाया जाना, परिवहन के समय वाहनों में जीपीएस का उपयोग करना आदि व्यवस्थाएं की गई है तो ईवीएम में गड़बड़ी कब हो सकती है।

 

अब यह मुझे समझ में ही नहीं आ रहा है कि हार का ठीकरा किसके ऊपर फोड़ दिया जाय।

 

भारत निर्वाचन आयोग के फुलप्रूफ पारदर्शी सिस्टम और ईवीएम को अब तो बदनाम मत करिए।