पेशे से चिकित्सक डा. अनिल भदोरिया स्वास्थ्य के साथ पर्यटन और अध्यात्म विषयों पर भी कलम चलाते हैं। सरल हिंदी में श्रीराम जन्म भूमि अयौध्या में श्रीराम के बाल स्वरूप विग्रह का दर्शन के बाद लिखा गया आलेख आप सब सुधी पाठकों के लिये प्रेषित है।

 

अलौकिक अयोध्या

  • डा. अनिल भदोरिया   

अनादिकाल से अयोध्या एक ऐसे अलौकिक प्रतीक के रूप में स्थापित रहा है जो राज-सत्ता और अध्यात्म के साथ - साथ सामाजिक व्यवस्था को स्थापित करने का हेतु कार्यशील है अयोध्या का शाब्दिक अर्थ भले जहां युद्ध न होता होपरंतु प्रकृति की लीला के प्रभाव से अयोध्या कभी अछूती नहीं रह पाई है अयोध्या नगरी काल के उतार चढ़ाव से साक्षात्कार करते - करते इक्कीसवीं सदी के इस कलयुगी दौर में नये कलेवर से सज्जित हो सनातनी मानव मन को मोहित करने को आतुर है सतयुग से नवीकरणीय प्रयास की अनमोल धरोहर रही है शाश्वत अयोध्या, जो आज भी अनुकरणीय प्रतीत होती है

 

खैर, मेरी यात्रा के दौर में अयोध्या की धरती पर पैर रखते ही हृदय भावुक हो गया और स्वतः स्फूर्त हो मेरे कदम अयोध्या की रज को स्पर्श कर माथे पर लग गये मेरा स्वयं का हृदय स्पंदन मुझे सुनाई देने लगा और भावातिरेक हो प्रभुश्री राम की जन्मभूमि साकेत का मुझे स्वीकार कर आलिंगन कर लेना द्रवित कर गया

नास्तिक हों या आस्तिक, सनातनी हों या जैनी, अयोध्या का अनादिकाल से पूजनीय स्थान सदैव से स्थापित होने के साथ - साथ स्वीकार्य भी है अयोध्या हमारे पूर्वज भगवान श्री राम की ही जन्मभूमि नहीं है बल्कि अयोध्या ने कालान्तर में जैन अनुयाइयों के 5 तीर्थंकरों को भी अपनी पावन धरा पर जन्म दिया और अपने आंचल में पाला पोसा है जैन धर्म के 24 तीर्थंकरों में से साकेत में जन्मे ये तीर्थंकर आदिनाथ, अजीतनाथ, अभिनन्दन नाथ, सुमित नाथ और अनत नाथ हैं

श्रीराम के जन्म के सम्बन्ध में इस कलियुग में अतिसंशय रहा है परन्तु आधुनिक विज्ञान से अब श्रीराम के जन्म की पूर्ण पुष्टि होती है श्रीराम के जन्म की तिथि का मूर्धन्य महर्षि वाल्मीकि ने बालकांड के सर्ग अट्ठारह के श्लोक क्रमांक 8 और 9 (1/18/89) में वर्णन किया है कि श्री राम का जन्म चैत्र माह की नवमी तिथि को हुआ उस समय ग्रहों नक्षत्रों तथा राशियों की स्थिति इस प्रकार थी

 

 

सूर्य मेष में

शनि तुला में

बृहस्पति कर्क में

शुल्क मीन में

मंगल मकर में

चैत्र शुक्ल पक्ष

चंद्रमा पुनर्वसु के निकट कर्क राशि

नवमी की दोपहर समय लगभग 12:00 बजे

उपर्युक्त खगोलीय स्थिति को कंप्यूटर में प्रविष्टि कराई जाती है तो प्लेनेटोरियम सॉफ्टवेयर के माध्यम से यह निर्धारित हुआ कि 10 जनवरी 5114 ईसा पूर्व दोपहर के समय ग्रहों-नक्षत्रों तथा राशियों की स्थिति बिल्कुल यही थी जो महर्षि वाल्मीकि ने वर्णित की है इस प्रकार श्री राम का जन्म 10 जनवरी को वर्ष 5114  ईसा पूर्व याने लगभग 7118( आज से 7138) वर्ष पूर्व हुआ जो भारतीय कैलेंडर के अनुसार चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि है और समय 12:00 से 1:00 के बीच का है

अयोध्या का बुलावा जब होता है, एक भिन्न उर्जा की प्रतीति मन के शरीर में होती है जिसे शब्दों में नहीं पिरोया जा सकता हैं नास्तिक के लिये भी श्रीराम का नाम स्तुत्य है क्योंकि वे हमारे ऐसे पूर्वज हैं जिनका पूर्ण जीवन दुर्घटनाओं से भरपूर रहने के बाद भी एक ऐसा उदाहरण प्रस्तुत करता है कि राजा राम ने मर्यादा पुरषोत्तम राम के सिद्धांतों से कभी किनारा नहीं किया

अयोध्या की यात्रा एक जागृत स्थल का साक्षात्कार है जो हृदय, मस्तिष्क, रक्त के परे उस उच्च अति विशिष्ट स्तर से आलोकित करती है जो इस मृत्यलोक के चार आयामी स्वरूप से कदाचित ऊपर है

श्रीराम की जन्मभूमि का यह आलोक अब देखते ही बनता है जहां भौतिक स्तर पर संरचना सुधार की गंगा बहती प्रतीत होती है सम-आकार में बाजार, एक रंग के पीताम्बरी दो मंजिला बाजार भवन, चौड़ी सड़कें, दुकानों के एक रूपेण नाम -पट्टिकायें और आधुनिकृत चौराहे हम भारतीयों की अस्त व्यस्त जीवन शैली में सौंधी महक के रूप में प्रस्तुत होता है चौड़ी सड़कों पर पक्के सम-विभाजक और विभाजकों पर कलात्मक प्रकाश प्रदायक लौह खंब, श्रीराम भक्त को विष्मित कर देते हैं उस पर आश्चर्य होता है जब आप जन्मभूमि की और छोटी - छोटी गलियों से गुजरते हुए आगे बढते है तो  पावन भूमि पर स्थापित आश्रमों की पुरातन और नवीन संपतियों का दर्शन आपको अयोध्या के चिरातन इतिहास से अभिभूत कर देता है

 

मंदिर प्रांगण पहुंचते ही आप द्रवित होने लगते हैं जबकि  दर्शन हेतु सुधि व्यवस्था आपको चमत्कृत करती चलती है मंदिर प्रांगण विहंगम है, अति विस्तारित है जहां दिशा भ्रम न हो, इस हेतु स्वयंसेवक (Volunteers) मार्गदर्शन को उपस्थित हैं महिलाओं और बुजुर्गों के लिये आरामदायक कुर्सी वाहन (Wheel-Chair) भी प्रचुर संख्या में उपलब्ध हैं

दर्शन हेतु गर्भ ग्रह का अवलोकन पंक्तिबद्ध रामभक्त को दूर से ही होने लगता है और जय श्रीराम का उद्घोष जनता जनार्दन के कर्णों में मिश्री की भांति घुलता जाता है और जब आप श्रीराम के बालरुप विग्रह के समक्ष सीधे दर्शन को अकुलाते हृदय के साथ उपस्थित होते हैं तो कंठ अवरुद्ध, नैन-सजल, मस्तिष्क-जड़ और शरीर-सुन्न होता प्रतीत होता है

नयनो से सुदर्शन का लोभ बाल रूप की छवि सदा के लिये चोर मन में विराजित कर लेने को इस प्रकार उपलब्ध होता है जिसे गूँगे का गुड़ के रूप में परिभाषित किया जा सकता तात्पर्य यह है कि प्रभुजी श्रीराम के मनमोहक दर्शन से मन आल्हादित हो मगन हो उठता है जिसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता है

मंदिर की प्राचीर और भित्तियों पर पूर्ण रामायण के विभिन्न प्रसंगों की मनमोहक मूर्तियाँ उकेरी गयी हैं जिनमें सम्मिलित हैं राम-भरत और राम-हनुमान मिलाप की मूर्तियाँ जो सुंदर बन पड़ी हैं, वे अभिभूत और द्रवित कर देती हैं परिसर में निरंतर निर्माण कार्य जारी है तथा सभागृह, सीता रसोई, संग्रहालय आदि का निर्माण प्रचालन में है राम-रसोई में निर्धारित समय पर भोजन प्रसादी की व्यवस्था भी है चरण पादुका और मोबाइल फोन सुरक्षित रखने के लिए पर्याप्त संख्या में लाकर्स बनाये गए हैं आम और कुलीन किसी भी व्यक्ति के लिए मंदिर भवन में मोबाइल फोन ले जाने या विग्रह का चित्र लेने की अनुमति नहीं है ठीक भी है कि जिस दर्शन काज से बालरूप के दर्शन को उपस्थित हुए हैं, वह मनमोहक रूप नैनों में ही बसा लें, सदा सदा के लिए

नगरी अयोध्या न केवल अपने प्रभुजी के जन्मस्थान से आकर्षित करती है बल्कि सरयू नदी भी पुण्य सलिला के रूप में आगंतुकों के दर्शन और सूर्य को जलार्पण का सुअवसर प्रदान करती है सरयू नदी का फैलाव अत्यधिक चौड़ा है जो बहती जलराशि की महती मात्रा से अयोध्या के प्रथम अवसर के आगंतुक को आश्चर्यचकित कर देता है सरयू नदी में सनातन धर्मावलम्बियों के सुरक्षित स्नान के लिए प्रशासन ने राम की पेढ़ी के नाम से सुरक्षित घाट का निर्माण किया है जहां मात्र 2 फीट गहरा पानी है, भक्तजन अपनी आस्था के अनुरूप स्नान कर लेते है इसी घाट पर प्रमुख और पावन तिथियों पर दिया तेल बाटी के संयोजन से रात्रि में प्रकाश किया जाता है जो अलौकिक दृश्य प्रस्तुत करता है

अयोध्या के प्रवेश पर एक विहंगम प्रवेश द्वार दूर से दिखाई होता है जो भगवान् श्रीराम के धनुष से आलोकित है वनगमन के समय प्रभु श्रीराम वल्कल पहनकर और अपने धनुष का दंड का धारण कर सब सत्ता छोड़ गए थे उसी धनुष की प्रतिकृति दर्शनार्थियों की दृष्टि को जादुई रूप से चमत्कृत कर देती है अन्य चौराहों पर वीणा की सीमेंट रेत से बनी आकृति दर्शन का मुख्य बिंदु बन जाती है.

राम सीता का विवाह संपन्न होने के बाद तीनों माताओं ने मुंह दिखाई में कनक भवन भेंट दिया था, वह कनक भवन प्रतीक रूप में राम जन्मभूमि के समीप ही अवस्थित है जो अपनी वास्तुकला से उस दौर के रहवासी भवनों की अद्भुत छवि प्रस्तुत करता है केंद्र में बड़ा आँगन और आँगन के चारोँ ओर कक्षों की लम्बी कतारों की श्रंखला है इस प्रकार के भवन कला गाँव में और दक्षिण भारत में आज भी प्रचलन में है मध्यप्रदेश के ओरछा में स्थित राजा श्रीराम का मंदिर भी लगभग कनक भवन की प्रतिकृति है

पौराणिक हनुमान गढ़ी मंदिर को अयोध्या नगर के रक्षक कोतवाल का प्रतीक माना जाता है जो भक्ति पथ पर स्थित है सनातनियों के आस्था का केंद्र बिन्दु भी है जहाँ अत्यंत भीड़ होती है इंदौर से रेल मार्ग पर स्थित है अयोध्या जहां सीधे पंहुचा जा सकता है वायुमार्ग से वाया दिल्ली सीधे अयोध्या पहुंचा जा सकता है जबकि इंदौर से लखनऊ और वाराणसी की सीधी हवाई सेवा है वाराणसी से अयोध्या लगभग 220 कि. मी. और लखनऊ से अयोध्या 140 किलोमीटर की दूरी पर है सड़क मार्ग अच्छा है तथा बस, ट्रेन, टैक्सी, शेयर टेक्सी भी उपलब्ध हो जाती हैं नेशनल हाईवे 27 दिल्ली गोरखपुर होने से सड़क मार्ग सुविधाजनक भी है

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डा. अनिल भदौरिया एम.बी.बी.एस. (एम.जी.एम. मेडिकल कॉलेज, इंदौर ), एम.पी. टी. (स्पोर्ट्स), एम.बी.ए. सहायक संचालक, कर्मचारी राज्य बीमा सेवाएँ, श्रम विभाग, मध्य प्रदेश शासन में सेवारत है तथा मुख्यालय इंदौर में पदस्थ हैं 

डॉ भदौरिया की सेक्स एजुकेशन (पीकॉक पब्लिकेशन, नई दिल्ली) से पुसतक प्रकाशित हो चुकी है वे नई दुनिया, दैनिक भास्कर, अहा दुनिया, पत्रिका, जीमा (कलकत्ता) में अपने स्वास्थ्यपरक, यात्रा वृतांत, कविताओं व व्यंग्य आधारित आलेखों से प्रकाशित होते रहे हैं इण्डियन मेडिकल एसोसिएशन की इंदौर शाखा के अध्यक्ष भी रहे हैं तथा राष्ट्रीय स्तर पर भी विभिन्न पदों पर कार्य करते रहे हैं

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