नवरात्रि पर्व की आपको सपरिवार हार्दिक बधाई....

आपका दिन शुभ हो... मंगलमय हो...

 

आज का चिंतन

                                                  * संजय अग्रवाल

 

तुम भी मानो...

 

व्यक्ति कहता है कि -

मैं सही हूं (यह

उसका विश्वास है)

मैं ही सही हूं  (यह अहंकार है) और

तुम भी  मानो कि मैं ही सही हूं (यह उसकी जिद है)

 

सही गलत

हर व्यक्ति के विचार, व्यवहार,

सोच समझ, अपेक्षा, गंभीरता,

स्वीकार्यता, तालमेल इत्यादि

की क्षमता दूसरे से अलग होती है

और यह नितांत स्वाभाविक है।

और दृष्टिकोण के अंतर होने से ही

हरेक की सही और गलत की

समझ अपनी-अपनी होती है।

 

टकराव अहम का

तुमने मेरी बात नहीं मानी

तो तुम मेरे अनुकूल नहीं हो

और यही तुम्हारी गलती है,

इसीलिए तुम गलत हो।

ऐसा सोचने से संबंध कभी भी

ठीक से निभाए नहीं जा सकते।

 

मान्यता

दूसरे की बात को पूरी तरह

या आंशिक तौर पर मानना

या नहीं मानना यह व्यक्ति की

निजी समझ होती है और यह

उसका अपना चुनाव होता है।

यदि बल पूर्वक उससे कोई बात

मनवा भी ली जाए तो दिखावे

के लिए वह ऐसा कर लेगा,

लेकिन मन से उस बात को

वह कभी भी नहीं मानेगा और

इस तरह बात को मनवाने का

कतई कोई लाभ नहीं होता है,

यह केवल मन का भ्रम होता है।

 

भावना

अपनी बात रखना -

यह अपने विचार एवं भावों

का प्रदर्शन मात्र है और

उस बात से दूसरा कितना

कम या ज्यादा सहमत होता है

यह उसके अपने

विचार एवं भाव का विषय है

और इसके लिए उसकी

निजी स्वतंत्रता को मान्यता

देना ही उचित और

आवश्यक होता है।

उसकी निजता और स्वतंत्रता की

सहज स्वीकार्यता हमारी

परिपक्वता को प्रदर्शित करता है।

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  •  श्री संजय अग्रवाल आयकर विभाग, नागपुर में संयुक्त आयकर आयुक्त हैं. वे हमेशा लोगों से सम्पर्क और संवाद करने के लिये इच्छुक रहते हैं इसीलिए वे संपर्क, संवाद और सृजन में सबसे अधिक विश्वास करते हैं  मानवीय मूल्यों और सम्बंधों के सूक्ष्म विश्लेषण के चितेरे श्री अग्रवाल "आज का चिंतन" नियमित रूप से लिख रहे हैं