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आज का चिंतन

                                                  * संजय अग्रवाल

 

सुनना

 

दूसरे की बात को 

ध्यानपूर्वक सुनना 

एक विशेष गुण होता है।

अधिकतर यह देखा गया है 

कि हम जवाब देने के लिए 

हमेशा तत्पर होते हैं

सुनने के लिए नहीं।

ऐसा शायद इसलिए कि 

हमारे पास कहने को 

बहुत कुछ है और यह भी 

कि हम ऐसा मानते हैं 

कि हम सब जानते हैं।

 

अवसर

ध्यान से पूरी बात नहीं सुनना,

या बीच में जवाब दे देना,

ऐसा करने से हम 

नई बातों को जानने से 

वंचित हो जाते हैं,

हमारी समझ में जो 

नए आयाम जुड़ सकते थे

उस अवसर को हम खो देते हैं,

और संवाद से 

जिस उद्देश्य की पूर्ति होती,

और संतुष्टि होती

वह भी ठीक से 

नहीं हो पाती है

यहां तक कि इससे सामने

वाले की नजरों में हमारी 

छवि तक धूमिल हो सकती है। 

 

प्रभावी संवाद

कोई भी संवाद तभी 

प्रभावी हो सकता है जब 

दोनों पक्ष एक दूसरे की 

बातों को ध्यान से सुनें,

पर्याप्त सम्मान दें,

पहले कहे हुए को

अच्छे से समझें,

फिर सोचें, मनन करें 

और फिर बोलें।

 

क्या करना चाहिए

सबसे पहले सामने वाले की 

पूरी बात को सुन लेना

छोटे-छोटे प्रश्नों से उसके 

हर पहलू को समझ लेना

और फ़िर पूरी तस्वीर साफ 

होने के बाद, उसे 

समग्रता से समझने के बाद

अर्थपूर्ण बात कहना

यही उचित होता है।

पूरी बात बिना सुने 

बोल देने से, नादानी और 

अपरिपक्वता का पता चलता है

यहां तक की हास्यासपद 

स्थिति निर्मित हो जाती है।

 

आईए देखते हैं कि

हमारे अंदर 

सुनने के लिए

पर्याप्त धैर्य 

हमेशा होता है क्या?

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  •  श्री संजय अग्रवाल आयकर विभाग, नागपुर में संयुक्त आयकर आयुक्त हैं. वे हमेशा लोगों से सम्पर्क और संवाद करने के लिये इच्छुक रहते हैं इसीलिए वे संपर्क, संवाद और सृजन में सबसे अधिक विश्वास करते हैं  मानवीय मूल्यों और सम्बंधों के सूक्ष्म विश्लेषण के चितेरे श्री अग्रवाल "आज का चिंतन" नियमित रूप से लिख रहे हैं