आज का चिंतन... संजय अग्रवाल
आज का चिंतन
* संजय अग्रवाल
काश
बीते जीवन की स्मृतियों में
कुछ सुखद होती हैं
कुछ दुखद और
शेष अफसोस से भरी हुई।
अफसोस कि
काश मैं यह कर लेता
काश मैं यह कह देता।
कसक
समय रहते यदि
कुछ कर ना पाए
जो कर लेना था या
कुछ कह ना पाए
जो कह देना था
और उसके कारण
कुछ ऐसा हो गया
जिसकी भरपाई
कभी नहीं हो सकती है
उसकी कसक
हमेशा बनी रहती है
और दिल में फांस की तरह
चुभती रहती है।
जिम्मेदार
जीवन के हरेक अफसोस
या काश के लिए हम
और केवल हम ही जिम्मेदार
होते हैं, कोई दूसरा नहीं।
ऐसा कभी नहीं होता कि
काश वह ऐसा कर लेता।
यह भाव केवल स्वयं
के लिए होता है कि
काश मैं ऐसा कर लेता
या मैं ऐसा कह देता।
क्या करें
जीवन के प्रत्येक क्षण को
भरपूर उत्साह, उमंग, विश्वास
के साथ जिएं।
जो भी कहना या करना है
कह दें या कर डालें,
और यदि ना कर पाएं तो
उसके लिए अफसोस
कभी ना करें
जो हो गया सो हो गया
उसे भूल जाना ही अच्छा है
अन्यथा उसके लिए
अफसोस करना हमारी
ऊर्जा को क्षीण कर देता है।
आईए आज हम देखें कि
हमने अपने जीवन को
अफ़सोस रहित करने के बाद
भरपूर उत्साह और ऊर्जा से
जीना शुरु कर दिया है क्या?
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- श्री संजय अग्रवाल आयकर विभाग, नागपुर में संयुक्त आयकर आयुक्त हैं. वे हमेशा लोगों से सम्पर्क और संवाद करने के लिये इच्छुक रहते हैं। इसीलिए वे संपर्क, संवाद और सृजन में सबसे अधिक विश्वास करते हैं। मानवीय मूल्यों और सम्बंधों का सूक्ष्म विश्लेषण के चितेरे श्री अग्रवाल "आज का चिंतन" नियमित रूप से लिख रहे हैं।