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आज का चिंतन

  • संजय अग्रवाल

 

समझ और समझौता

 

जब कोई बात हमें समझ में 

आ जाती है तो वह हमारे स्वयं के 

विचार, व्यवहार और आचरण 

का हिस्सा बन जाती है। 

वहीं दूसरी ओर यदि कोई बात 

हमें समझ में नहीं आती है 

तो उसे दिखावे के लिए मान लेना 

या उसके अनुरूप 

या उसके अनुसार 

अनिच्छा से पालन करना 

या व्यवहार करना हमारे लिए 

समझौता कहलाता है।

 

सोच और समझ 

हमारी सोच, हमारे पूर्व के 

अनुभवों पर आधारित होती है।

और नए-नए अनुभव 

होते चले जाने से हमारी 

समझ में बढ़ोतरी होती जाती है 

और इस प्रकार हमारी सोच 

में बदलाव आता जाता है।

समझ में बढ़ोतरी होना 

परिपक्वता की निशानी होती है।

 

समझौता

समझौता सदैव दबाव में किया जाता है,

दूसरे के अहम की तुष्टि के लिए 

या स्वयं को आसन्न संकट 

से बचाने के लिए। 

स्वेच्छा से कभी नहीं।

समझौता कभी कमजोरी की 

निशानी है तो कभी समझदारी की।

अनावश्यक टकराहट से स्वयं को 

बचा लेना भी कभी बेहतर होता है।

 

समझदारी

अपनी प्रकृति के अनुसार 

अपनी निजता और स्वाभिमान 

को बनाए रखना समझदारी है।

अपने दायित्व का निर्वहन करना 

और स्वधर्म का पालन करते हुए 

निरंतर उत्तरोत्तर प्रगति करना 

ही अभीष्ट होता है।

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श्री संजय अग्रवाल आयकर विभागनागपुर में संयुक्त आयकर आयुक्त हैं. वे हमेशा लोगों से सम्पर्क और संवाद करने के लिये इच्छुक रहते हैं इसीलिए वे संपर्कसंवाद और सृजन में सबसे अधिक विश्वास करते हैं  मानवीय मूल्यों और सम्बंधों के सूक्ष्म विश्लेषण के चितेरे श्री अग्रवाल "आज का चिंतन" नियमित रूप से लिख रहे हैं