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आज का चिंतन

  • संजय अग्रवाल

 

दो संसार

 

एक संसार है जो हमें दिखाई देता है

एक संसार वह है जो हमारे अंदर बसता है

बाहरी संसार में लोग हैं, परिस्थितियां हैं और

वह सब कुछ है जिससे हम

व्यवहार करते हैं और

इसका असर हमारे मन मस्तिष्क पर पड़ता है

हमारे अंदर का संसार इससे बिलकुल भिन्न है

यहां हमें गहरे और गहरे

उतरते जाना है

जहां कोई व्यवहार नहीं है

दिखावा नहीं है, अपेक्षा नहीं है

किंतु मात्र सत्य है

और इसलिए कदाचित इन दो संसारों को

माया और ब्रह्म कहा गया है

 

संसार के नियम

 

बाहरी संसार के अपने नियम हैं

वहां बुद्धि समझ का उपयोग करते हुए

परिस्थितियों का सामना करते हुए

लक्ष्य प्राप्त करने होते हैं

परिणाम प्राप्त करने होते हैं

बार-बार प्रयास करने होते हैं

हमें समस्या तब आती है

जब हमारे मन के अनुकूल या

अपेक्षा के अनुसार चीज नहीं मिलती है

आंतरिक संसार में

अपेक्षा का, विवाद का

कोई स्थान नहीं होता है

वहां मात्र सत्य की खोज होती है और

सत्य का प्रगटीरण होता है

 

बाहरी संसार में कैसे जिएं

 

अपेक्षा ही दुखों का मूल कारण है

मानव धर्म को समझते हुए

अपने कर्म को करते हुए

सरल और सहज भाव से जीना ही उचित है

दूसरों पर नियंत्रण करने की इच्छा व्यर्थ है

क्योंकि दूसरों पर नियंत्रण असंभव है

एक फिल्म में डायलॉग भी है कि

यह संसार एक रंग मंच है और

हम सब कलाकार हैं

जिन्हें अपनी भूमिका निभाना है

 

आंतरिक संसार

 

हमारे अंदर के संसार में

शांति है,

आनंद अपार है,

वहां कोई विरोध और विषाद नहीं है

ध्यान और साधना के माध्यम से

हम सत्य की खोज कर सकते हैं

ब्रह्म को पा सकते हैं

संत महात्मा यही बताते हैं कि

अपने अंदर झांको

वहां तुम्हें ईश्वर मिलेंगे

यह एक बहुत गहरी बात है और

इसे अनुभूति से ही समझा जा सकता है

 

मुझे जांच ना होगा कि

क्या मैं बाहरी संसार में

सहज या सरल हूं

क्या मैं आंतरिक संसार में

अंदर उतर पाया हूं

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श्री संजय अग्रवाल आयकर विभागनागपुर में संयुक्त आयकर आयुक्त हैं. वे हमेशा लोगों से सम्पर्क और संवाद करने के लिये इच्छुक रहते हैं इसीलिए वे संपर्कसंवाद और सृजन में सबसे अधिक विश्वास करते हैं  मानवीय मूल्यों और सम्बंधों के सूक्ष्म विश्लेषण के चितेरे श्री अग्रवाल "आज का चिंतन" नियमित रूप से लिख रहे हैं