आज का चिंतन

                                                  * संजय अग्रवाल

 

 

 

इच्छा और अपेक्षा

दिल चाहता है अर्थात 

इच्छा या चाहत एक 

ऐसा भाव है कि 

ऐसा हो जाए या 

यह मिल जाए या 

मैं ऐसा कर लूं इत्यादि। 

वहीं दूसरी ओर 

अपेक्षा सदैव दूसरों से 

होती है कि 

वह ऐसा करे या 

उसे ऐसा करना चाहिए।

 

इच्छा शक्ति

तूफानों की ओर घुमा दो 

नाविक निज पतवार..।

इसके ही बल पर कर डाले 

सातों सागर पार..।

इच्छा शक्ति यदि 

आत्म शक्ति में बदल जाए

तो मनुष्य कैसा भी कार्य

संपन्न कर लेता है,

संपादित कर लेता है।

अन्यथा इच्छा एक 

कल्पना मात्र ही है 

या शेखचिल्ली के सपने 

जैसी ही कहलाएगी।

 

मन की क्यारी

मन की भूमि पर 

सदैव कुछ ना कुछ 

उगता रहता है 

बढ़ता रहता है 

मिटता रहता है।

यदि इसमें एक 

कुशल माली की तरह  

इच्छाओं को, हम एक 

सुंदर क्यारी की तरह 

सजा पाएं तो 

कर्मों की निराई गुड़ाई

से सुंदर-सुंदर 

परिणाम के फल और 

उपलब्धियां के फूल 

हमें मिल जाएंगे, अन्यथा 

मन की भूमि पर 

व्यर्थ की इच्छाओं की

खरपतवार के सिवाय

कुछ नहीं रह जाएगा।

 

अपेक्षा

हमारी अपेक्षा मात्र दूसरों 

से ही होती है और 

हर अपेक्षा सदैव पूरी हो 

यह कतई और कभी

भी संभव नहीं है

और अपेक्षा का पूरा 

न होना, निश्चित दुख का 

एक कारण, अवश्य 

बनता है, इसीलिए 

पूर्णतया सुखी रहना है 

तो अपेक्षाओं को शून्य 

करना ही होगा, किंतु

क्या यह सहज में  

संभव होता है?

हम भी कहां दूसरों की

हर अपेक्षा पर 

पूरी तरह खरे उतरते हैं?

उतर भी नहीं सकते

यह नितांत असंभव है

यही सत्य, सब पर 

लागू होता है।

 

आईए आज हम देखते हैं 

कि हमने अपनी इच्छाओं 

और अपेक्षाओं को 

वास्तविकता के धरातल 

पर उतारा है या नहीं?

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  •  श्री संजय अग्रवाल आयकर विभाग, नागपुर में संयुक्त आयकर आयुक्त हैं. वे हमेशा लोगों से सम्पर्क और संवाद करने के लिये इच्छुक रहते हैं इसीलिए वे संपर्क, संवाद और सृजन में सबसे अधिक विश्वास करते हैं  मानवीय मूल्यों और सम्बंधों का सूक्ष्म विश्लेषण के चितेरे श्री अग्रवाल "आज का चिंतन" नियमित रूप से लिख रहे हैं