आज का चिंतन

                                                  * संजय अग्रवाल

 

प्रयोग और प्रयास

जीवन में जो कुछ भी 

हमें प्राप्त होता है वह 

या तो अनायास होता है 

या स-प्रयास होता है। 

 

कर्म और भाग्य

जो मिल गया उसी को 

मुकद्दर समझ लिया, या 

वक्त से पहले किस्मत से ज्यादा 

किसी को नहीं मिलता। 

यह बातें मन को 

समझाने के लिए ठीक हैं,

लेकिन कर्म की महत्ता को

सदैव सर्वोपरि रखा गया है।

 

सकल पदारथ है जग माही

कर्म हीन नर पावत नाही।

 

कर्म प्रधान विश्व रचि राखा । 

जो जस करहि सो तस फल चाखा ॥ 

 

कर्मण्येवाधिकारस्ते 

मा फलेषु कदाचन 

अर्थात् कर्तव्य-कर्म 

करने में ही 

तेरा अधिकार है

फल में कभी नहीं।

 

उचित क्या है

जहां कर्म की सीमा 

समाप्त हो जाती है 

उसके पश्चात ही भाग्य की 

भूमिका शुरू होती है।

अतः उचित यही होता है 

कि हम अपने प्रयास में 

कोई कमी ना छोड़ें

अपने हौसलों और 

अपनी हिम्मत की 

असीमित शक्ति पर 

सदैव पूरा विश्वास रखें।

 

परिणाम नहीं मिलता

असफलता 

केवल यह बतलाती है 

कि सफलता का प्रयास 

पूरे मन से नहीं हुआ।

हर एक असफलता

वस्तुतः एक प्रेरणा है 

कि नए प्रयोग किए जाएं

और नए ढंग से पुनः 

नए प्रयास किये जाएं।

 

बहानेबाजी

जब हम पूर्ण मनोयोग से

कार्य नहीं करते हैं तब 

हमें इच्छित सफलता 

नहीं मिलती है तो 

हम अनेक कारण 

गिनाने लग जाते हैं 

या बहाने बनाने लगते हैं 

और ऐसा करके हम 

स्वयं को छलते रहते हैं।

 

पराकाष्ठा 

यदि हम असफलता से 

घबरा कर प्रयास करना 

छोड़ दें तो यह 

ठीक नहीं है 

और यदि हम 

पराक्रम की पराकाष्ठा 

कर पाएं तो ही हमें 

संतोष की प्राप्ति 

हो सकती है 

अन्यथा 

पछतावा निश्चित है।

 

आईए आज हम देखें 

कि हमारे प्रयासों की दिशा 

संतोष की ओर है या नहीं?

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  •  श्री संजय अग्रवाल आयकर विभाग, नागपुर में संयुक्त आयकर आयुक्त हैं. वे हमेशा लोगों से सम्पर्क और संवाद करने के लिये इच्छुक रहते हैं इसीलिए वे संपर्क, संवाद और सृजन में सबसे अधिक विश्वास करते हैं  मानवीय मूल्यों और सम्बंधों का सूक्ष्म विश्लेषण के चितेरे श्री अग्रवाल "आज का चिंतन" नियमित रूप से लिख रहे हैं