आज का चिंतन - जिंदादिली
आज का चिंतन
* संजय अग्रवाल
ज़िंदादिली
जिंदगी ज़िंदादिली का नाम है
मुर्दा दिल क्या खाक जिया करते हैं।
ख़ुशमिज़ाजी
प्रसन्नता मन की अवस्था है।
यद्यपि बाहरी कारणों का
इस पर प्रभाव पड़ता है
किंतु मूलतः यह दृष्टिकोण,
सोच और आदत का विषय है।
इसीलिए इसे मिज़ाज
कहा जाता है।
सहृदयता
जितनी अधिक उदारता,
सहजता, सरलता
हमारे अंदर होगी
उतना ही ज्यादा
जिंदादिल हम हो सकेंगे।
मन की गांठे, विकार, संकोच
शक, अविश्वास, भय,
कृपणता, स्वार्थ,
आशंका इत्यादि इसमें
आड़े आती हैं।
उत्साह
यह भी मन का भाव है
आत्मशक्ति का परिचायक है
ऊर्जा का प्रमाण है
सक्रियता का कारक है
प्रसन्नता का स्रोत है।
निरंतर उत्साह
जीवन का प्रवाह है।
विनोदप्रियता
हंसोगे तो दुनिया साथ हंसेगी
रोओगे तो अकेले रोना पड़ेगा।
जिंदगी को मैंने
इस तरह निकाल दिया
कुछ हंस लिया और
कुछ हंस के टाल दिया।
हंसमुख होना स्वभाव की बात है
किंतु प्रयास पूर्वक इस दिशा में
अवश्य ही बढ़ा जा सकता है।
रसिकता
9 रस और 64 कलाओं से
सजा हुआ हमारा जीवन है
अंतर केवल
अनुपात का होता है।
अपनी रसिकता
प्रसन्नता और
मूल प्रवृत्ति को सदैव
स्वाभाविक बनाए रखना ही
उचित होता है
आवश्यक होता है
अभीष्ट होता है।
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- श्री संजय अग्रवाल आयकर विभाग, नागपुर में संयुक्त आयकर आयुक्त हैं. वे हमेशा लोगों से सम्पर्क और संवाद करने के लिये इच्छुक रहते हैं। इसीलिए वे संपर्क, संवाद और सृजन में सबसे अधिक विश्वास करते हैं। मानवीय मूल्यों और सम्बंधों का सूक्ष्म विश्लेषण के चितेरे श्री अग्रवाल "आज का चिंतन" नियमित रूप से लिख रहे हैं।