आज का चिंतन

पहले वह तो सुधर जाए

आपसी रिश्तों में,

विशेष कर पति-पत्नी में,

जब भी विवाद

या खटपट होती है,

तो दुराग्रह यही होता है कि

पहले वह तो सुधर जाए।

 

मैं ही सही हूं

व्यक्ति सदैव यह देखता है कि

सामने वाला गलत ही है

और वह स्वयं ही केवल सही है।

मानव स्वभाव है कि उसे

स्वयं के दोष और

दूसरों के गुण

आसानी से दिखाई नहीं देते हैं।

 

गुंजाइश

यदि व्यक्ति यह मान जाए

कि गलती मुझसे भी हो सकती है

और उसे इतनी समझ

भी होनी चाहिए कि

दूसरे में छुटपुट दोष शायद हों या

उस से कोई भूल चूक हो गई हो

लेकिन आपके प्रति

उसका समर्पण और सद्भावना

निष्णात है, तो कदाचित

शिकायत भले ही मिटे नहीं,

लेकिन आपसी व्यवहार

तो सामान्य रूप से अवश्य ही

किया जा सकता है।

 

अहम और रिश्ते

यदि व्यक्ति में अहंकार है तो

रिश्तों में गर्माहट, मधुरता

और अपनापन धीरे-धीरे

समाप्त होने लगता है।

प्यार शर्तों पर नहीं किया जाता,

और जो रिश्ता शर्तों से निभता हो

वह एक बोझ बनकर

ही रह जाता है।

 

त्याग और समर्पण

रिश्तों को निभाने के लिए

जिद और अहंकार का त्याग,

और निःशर्त एवं पूर्ण समर्पण

ही एकमात्र उपाय होता है।

इसमें हिसाब किताब का कोई

स्थान और औचित्य नहीं होता है।

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*  संजय अग्रवाल

संपर्क संवाद सृजन

नागपुर / भोपाल