किसान  दिवस पर विशेष

किसानों को कीटनाशकों के

दुष्प्रभावों से बचाएगा “किसान कवच  

  

नई दिल्ली। भारत में हरित क्रांति के समय रासायनिक खादों और  कीटकनाशकों का किसानों ने उपयोग करना शुरू कर दिया और बाद में बढ़ती जनसंख्या की खाद्यान्न पूर्ति के लिये उत्पादन बढ़ाने हेतु इनके उपयोग में बेतहाशा वृद्धि हुई है। रासायनिक खादों और जहरीले कीटकनाशकों के अनुचित तरीके से उपयोग करने से पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य, दोनों के लिए गंभीर खतरा पैदा हो गया है। छिड़काव के दौरानविशेषकर कीटनाशकों को मिलाते समयजोखिम का खतरा अधिक होता हैक्योंकि कीटनाशक त्वचाआंखोंमुंह या फेफड़ों के माध्यम से शरीर में प्रवेश कर सकते हैं। त्वचा का संपर्क विशेष रूप से खतरनाक हैक्योंकि शरीर के कुछ अंग कीटनाशकों को तेजी से अवशोषित करते हैंजिससे सुरक्षात्मक प्रक्रिया आवश्यक हो जाती है। कीटनाशकों के  अधिक उपयोग और उचित सुरक्षा उपायों की कमी के कारण 2015 और 2018 के दौरान देश में  442 मौतें हुईं है।  

रासायनिक खादों और जहरीले कीटकनाशकों के दुष्प्रभावों से बचाव के लिये ब्रिक इनस्टेम ने सेपियो हेल्थ प्राइवेट लिमिटेड के सहयोग सेबैंगलोर में एक बाडीसूट (वस्त्र) – किसान कवच तैयार किया है। इसे किसानों को कीटनाशकों के हानिकारक प्रभावों से बचाने के लिए डिज़ाइन किया गया है। यह अभूतपूर्व नवाचार किसानों की सुरक्षा सुनिश्चित करने और विज्ञान और प्रौद्योगिकी के माध्यम से कृषक समुदाय को सशक्त बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है। हाल ही में केंद्रीय मंत्री डा. जितेंद्र सिंह ने भारत के पहले कीटनाशक रोधी बॉडीसूट किसान कवच का अनावरण किया । इस अवसर पर उन्होने कहा कि "किसान कवच सिर्फ एक उत्पाद नहीं हैबल्कि हमारे किसानों के स्वास्थ्य की रक्षा करने का उनसे एक वादा है, क्योंकि वे देश के लिए अन्न उत्पादन में लगे हुए हैं

       

किसान कवच को इस तरह बनाया गया है को किसानों को  कीटनाशकों के दुश्प्रभावों से आवश्यक सुरक्षा प्रदान करता है। किसान कवच सुरक्षा कवच में एक फुल-बॉडी सूटमास्कहेडशील्ड और दस्ताने शामिल हैंजिससे व्यापक सुरक्षा सुनिश्चित होती है। किसान कवच का मूल्य 4 हजार रुपए है और यह दो साल तक चल सकता है। सूट को 150 बार तक धोया जा सकता है । इस सूट में उन्नत फैब्रिक तकनीक है जो संपर्क में आने पर हानिकारक कीटनाशकों को निष्क्रिय कर देती हैजिससे किसानों के लिए अधिकतम सुरक्षा सुनिश्चित होती है। इसका कपड़ा एक ऐसी प्रक्रिया के माध्यम से काम करता है जहां एक न्यूक्लियोफाइल कपास के रेशों से सहसंयोजक रूप से जुड़ा होता हैजिससे यह न्यूक्लियोफिलिक-मध्यस्थ हाइड्रोलिसिस के माध्यम से कीटनाशकों को बेअसर करता है।

कीटनाशकों की आवश्यकता

लगातार कम हो रही कृषि योग्य भूमिकम उत्पादकता और घटते कृषि कार्यबल के साथ बढ़ती खाद्य मांगों को पूरा करने के लिए कृषि उत्पादन में वृद्धि जरूरी है। कीट और अन्य रोगजनक प्रमुख फसलों में 15-25 प्रतिशत हानि का कारण बनते हैं। इसलिएइन चुनौतियों से निपटने के लिए कीटनाशकों का उपयोग भी आवश्यक है।

 

जैव-कीटनाशकों के उपयोग को बढ़ावा देना

कीटनाशकों के उपयोग को प्रभावी ढंग से कम करने के लिए, न केवल कानूनों को मजबूत करना आवश्यक है, बल्कि टिकाऊ कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देना भी आवश्यक है। सरकार रसायन-मुक्त खेती के महत्व को प्राथमिकता दे रही है और उसने जैव कीटनाशकों तथा जैविक खेती के उपयोग को प्रोत्साहित करने के लिए कई पहल शुरू की हैं।

 

 जैव कीटनाशकों के प्रकार

  • बैसिलस थुरिंगिएन्सिस, ट्राइकोडर्मा, स्यूडोमोनास, मेटारिज़ियम, ब्यूवेरिया और अन्य जैसे जैव कीटनाशक टिकाऊ फसल सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • भारत में, लगभग 20 सूक्ष्मजीव जैव कीटनाशकों के रूप में पंजीकृत हैं, जिन्हें कवक, बैक्टीरिया और वायरस में वर्गीकृत किया गया है।

 

एकीकृत कीट प्रबंधन (आईपीएम)

आईपीएम एक पारिस्थितिक दृष्टिकोण है जिसका उद्देश्य निवारक उपायों, सांस्कृतिक पद्धतियों, यांत्रिक नियंत्रण और जैविक नियंत्रण जैसे स्थायी तरीकों का उपयोग करके कीटों की आबादी को नियंत्रित करना है। जैव-कीटनाशकों और नीम फॉर्मूलेशन जैसे पौधों से उत्पन्न कीटनाशकों के उपयोग पर जोर दिया जाता है।

 सरकार कीटनाशकों के उपयोग को कम करने, जैविक खेती को बढ़ावा देने और भारत में कृषि पद्धतियों की स्थिरता को बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठा रही है। इन प्रयासों के परिणामस्वरूप, रासायनिक कीटनाशकों की खपत में भी कमी आई है, जिससे अधिक टिकाऊ कृषि पद्धतियों की ओर बदलाव में मदद मिली है।

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न्यूज़ सोर्स : पीआईबी