आलेख......

 

 

 

 

 

 

 

पराली और प्लास्टिक

  • पपलेश जोशी

 

पराली जलाना भले ही किसानों की मजबूरी है वे इससे होने वाले नुकसान को जानते भी हैं पराली जलाने के मामले में किसान और सरकार .. तू डाल डाल.. मैं पात पात कहावत सिध हो रही है। सरकर ने पराली जलाने पर जुर्माना लगा रखा है और किसान है कि मानते ही नहीं यानी प्रतिबंध के बाद भी पराली जलाने से बाज नहीं आ रहे हैंलेकिन धीरे-धीरे अब जागरूकता के कारण पराली जलाने की घटनाएं में आंशिक कमी आई है किसान भी अब समझने लगे कि पराली जलाने से पर्यावरण को नुकसान होता है। इसी तरह प्लास्टिक के गिलास, दोने , पत्तल आदि का भी बड़ी मात्रा में विवाह और अन्य समारोहों में  उपयोग किया जा रहा है। हालाकि सरकार ने सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगा रखा है लेकिन जिस तरह पराली जलाने पर प्रतिबंध लगाने के कानून की धज्जियां उड़ रही हैं, उसी तरह डिस्पोजल के उपयोग पर लगाए गए प्रतिबंध का हश्र हो रहा है।

एक गांव, जिसकी आबादी हजार से डेढ़ हजार की होगी, हर साल कम से कम 25-30 बड़े समारोह , आयोजन होते हैं जिनमें सैकड़ों लोगों का भोजन भी होता है। भोजन के लिये डिस्पोजल का ही उपयोग होता है। यदि प्लास्टिक/ डिस्पोजल के उपयोग से होने वाले नुकसान का आकलन करेंगे तो हम देखते हैं कि इससे जमीन के साथ वहां के पानी की गुणवत्ता भी प्रभावित हो रही है। इसके अलावा खुले स्थान पर फेंकने से उनपर भोजन लगा होने से पशु भी खा लेते हैं जिनके कारण पशुओं की मौत तक हो जाती है। कई लोग डिस्पोजल का उपयोग करने के बाद उनमें आग लगा देते हैं। प्लास्टिक को जलाने से जो जहरीला धुआं निकलता है, वह कैंसर होने का एक बड़ा कारण भी बनता है। जहरीले धुएं से पर्यावरण भी प्रदूषित होता है। जिसकी भरपाई सम्भव नहीं होती है।

जब प्लास्टिक अस्तित्व में नहीं था तब गांवों में पत्तों की पत्तल, दोने बनाए जाते थे । इससे पत्तल दोना बनाने वालों को रोजगार भी मिलत अथा। इसका सबसे बड़ा फायदा पर्यावरण को होता था। पत्तों से बनी पत्तल, दोना को पशु भी खा लेते हैं। इनकी खाद भी बन जाती है जबकि डिस्पोजल कभी नष्ट नहीं होता है। आजकल जनसंख्या अधिक होने से अधिकांश लोग डिस्पोजल का उपयोग करते हैं। लेकिन हर समस्या का निदान भी होता है। अनेक ग्राम पंचायतों और नगर निकायों ने बर्तन बैंक भी बना लिये हैं। जब किसी को बर्तनों की जरूरत होती है, वे मामूली दर पर किराये से ले आते हैं। इनका किराया डिस्पोजल की कीमत से काफी कम होता है। अब डिस्पोजल के उपयोग के प्रति जागरूकता आ रही है लेकिन पूरी तरह बंद होने में समय लगेगा।

अब हम सभी को संकल्प लेना होगा कि हम स्वास्थ्य और पर्यावरण को ठीक रखने के लिए न तो पराली जलाएंगे और न ही डिस्पोजल का उपयोग करेंगे। यह समाज और देश, दोनो के लिये लाभदायक है।

*********************  

 

 

 श्री पपलेश जोशी, सामाजिक कार्यकर्ता, हरनावदा, टोंकखुर्द, देवास (म.प्र.)