सौहार्द्र और स्नेह का पर्व भुज़रिया

  •  कमल किशोर दुबे 

रक्षाबंधन के दूसरे दिन भुजरिया पर्व पूरी श्रद्धा और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है । यह त्यौहार सम्पूर्ण बुंदेलखंड एवं मध्य प्रदेश के होशंगाबाद, विदिशा, नरसिंहपुर, छिन्दवाड़ा , जबलपुर तथा इनके आसपास के कुछ अन्य जिलों में अधिकांश स्थानों पर मनाते हैं। यह एक अत्यंत सौहार्दपूर्ण पारंपरिक उत्सव है। भारतीय संस्कृति के आपसी आदर, प्रेम-स्नेह एवं सौहार्द को पल्लवित-पुष्पित करने वाला त्यौहार है।

       भुजरिया वास्तव में गेहूँ के जवारे होते हैं। रक्षाबन्धन से करीब 8-10 दिन पहले पलाश के पत्ते से बने हुए दोनों या बाँस की छोटी-छोटी टोकरियों में पवित्र मिट्टी में गोबर की खाद मिलाकर में बोये जाते हैं। इन टोकरियों को सीधे प्रकाश ( sun light) से बचाकर रखा जाता है जिससे यह हल्के पीले रंग के हो जाते हैं। इन्हें प्रतिदिन पानी सींचकर रखते हैं। रक्षाबंधन के दूसरे दिन घर में इनकी देवी स्वरूप मानकर पूजा की जाती है।

      घर की सुहागिन महिलाएँ या कुँवारी कन्याएँ भुजरियों की टोकनियों को अपने सिर पर रखकर समीप के तालाब या नदी के किनारे स्थानीय लोक गीत गाते हुये  ले जाती हैं। वहाँ सामूहिक रूप से पूजन के पश्चात विसर्जन होता है। ( आजकल कुछ स्थानों पर लोग अपने घर में ही पूजन करके पानी के स्रोत के पास विसर्जन करने लगे हैं। ) इन्हें विसर्जन के पश्चात दोने या टोकरी से उखाड़कर एक दूसरे को आदान प्रदान किया जाता है। शाम को गांवों में तो त्यौहार के कारण चहल पहल बढ़ जाती है।  छोटे-बड़े या रिश्तों के अनुसार एक दूसरे से गले मिलकर, चरण स्पर्श करके आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। भुजरियों के आदान प्रदान के दौरान माता-पिता, गुरु, पूजनीय, बुजुर्ग छोटों से भुजरियें लेकर उनके कान में लगा देते हैं। जो उनके आशीर्वाद का परिचायक होता है। इस तरह यह अत्यंत आनंद एवं सौहार्दपूर्ण उत्सव होता है।  गाँव / परिचितों में उस वर्ष किसी परिवार में किसी का स्वर्गवास हुआ हो तो उसके घर जाकर सान्त्वना भी देते हैं।

      इस त्यौहार में जाति-धर्म, अमीर-गरीब के बीच भेदभाव रहित भुजरियों के आदान-प्रदान से कोई मनमुटाव या वैमनस्य भी हो तो दूर हो जाता है एवं आपस में सौहार्दपूर्ण संबंध एवं वातावरण निर्मित हो जाता है। ( भुजरिया को कुछ क्षेत्रों में कजलिया भी कहते हैं ) 

श्री कमल किशोर दुबे पश्चिम मध्य रेलवे से वरिष्ठ जनसम्पर्क अधिकारी के पद से सेवानिवृत होने के बाद वर्तमान में भोपाल में निवासरत हैं. इन दिनोंं साहित्य की विधा गीत, कवितायें और व्यंग्य लेखन कर रहे हैं. समय समय पर सम सामयिक विषयों पर भी लिखते हैं.   

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