सादगी की प्रतिमूर्ति : लाल बहादुर शास्त्री

पूर्व प्रधानमंत्री स्व. लालबहादुर शास्त्री जी की 120वीं जयंती है। इस अवसर पर पश्चिम मध्य रेलवे के सेवानिवृत्त वरिष्ठ जनसम्पर्क अधिकारी एवं साहित्यकार श्री कमल किशोर दुबे ने एक प्रेरक प्रसंग प्रेषित किया है... यह प्रेरक प्रसंग आपके अवलोकनार्थ प्रस्तुत है....
सादगी की प्रतिमूर्ति : लाल बहादुर शास्त्री
एक वृद्ध महिला के तेज-तेज क़दमों से स्टेशन की ओर चली जा रही थी। उसे चिंता हो रही थी कि आज की आखिरी ट्रेन अगर स्टेशन से निकल गई तो फिर कल सुबह ही अगली ट्रेन मिल सकेगी। लेकिन स्टेशन पहुँचते-पहुँचते वह आखिरी ट्रेन भी छूट ही गई। वह वृद्ध महिला निढाल होकर एक बेंच पर बैठ गई । उसके चेहरे पर चिंता के भाव स्पष्ट झलक रहे थे !
एक कुली ने उसे प्लेटफॉर्म पर अकेली बैठे देखकर पूछा- माईजी, आपको कहाँ जाना है ?
माई -- मैं अपने बेटे के पास दिल्ली जाऊँगी ।
कुली - पर आज तो अब कोई ट्रेन नहीं है माई, अब कल सुबह ही मिलेगी!
यह सुनकर वह वृद्धा कुछ और उदास हो गई।
महिला को उदास देखकर कुली ने कहा -- माई, अगर आपका घर दूर हो तो यहीं प्रतीक्षालय में आपके आराम करने का प्रबंध कर दूँ ? और... स्टेशन मास्टर साब से कहकर भोजन भी आपको वहीं पहुँचा दिया जाएगा। इसमें कोई परेशानी की बात नहीं है। वैसे, दिल्ली में आपका बेटा क्या काम करता है ?
माँ ने जवाब दिया - "मेरा बेटा रेल महकमे में काम करता है।"
कुली ने कहा - माई आप जरा बेटे का नाम बताइए ?
मैं कोशिश करूँगा कि अगर संपर्क संभव होगा तो कंट्रोल फोन से आपकी बात करवा दूँगा।
माँ ने जवाब दिया -- वह मेरा बेटा है, मैं उसे प्यार से "नन्हे" या "लाल" ही बुलाती हूँ।
हाँ, दूसरे सब लोग उसको लाल बहादुर शास्त्री कहते हैं !
वृद्ध महिला के मुँह से उनके बेटे का नाम सुनकर कुली के पैरों तले से जमीन खिसक गई ।
वह अवाक रह गया। वह तुरंत भागकर स्टेशन मास्टर के कमरे में पहुँचा और एक ही साँस में पूरा वृतान्त कह सुनाया ।
यह सुनते ही स्टेशन मास्टर तुरंत हरकत में आए और आनन-फानन में कंटोल फोन से कुछ लोगों से बात की । फिर अपने मातहतों के साथ भागकर बूढ़ी महिला के पास पहुँच गए ।
महिला को सादर प्रणाम कर स्टेशन मास्टर ने पूछा -- माँ जी आपके बेटे ने कभी आपको बताया नहीं कि वह रेल महकमे में क्या काम करते हैं ?
माँ जी -- बताया था न उसने, बताया था कि अम्मा "मैं रेलवे के दिल्ली दफ्तर में छोटा सा मुलाजिम हूँ!!"
स्टेशन मास्टर - माँ जी, आपकी शिक्षा व संस्कारों ने आपके बेटे को बहुत बड़ा और महान व्यक्ति बना दिया है। आप जानना नहीं चाहेंगी कि आपके बेटे जी रेल महकमे में कौन-सा काम करते हैं ?
स्टेशन मास्टर की बात सुनकर महिला के चेहरे पर विस्मय के भाव आ गए!
स्टेशन मास्टर बोले - माँ जी, वे, इस पूरे भारत में जितनी रेलगाड़ियाँ चलती हैं और मेरे जैसे लाखों रेलवे कर्मचारियों, अधिकारियों के मुखिया और अगुआ हैं, वे भारत के माननीय रेल मंत्री हैं।
स्टेशन मास्टर और वृद्ध महिला के बीच चल रहे वार्तालाप के दौरान ही स्टेशन का माहौल पूरी तरह बदल चुका था।
अचानक सायरन की ध्वनि के साथ जिले के पुलिस कप्तान, जिला कलेक्टर सहित रेलवे पुलिस बल के जवान और अधिकारी स्टेशन पर पहुँच चुके थे, स्पेशल एंबेसडर कार भी आ चुकी थी।
स्टेशन मास्टर ने वृद्ध माँ को प्रणाम करते हुए उनको पूरे सम्मान के साथ रेलवे के सुरक्षा कर्मियों को सौंपकर रेलमंत्री शास्त्री जी के पास दिल्ली रवाना कर दिया। बनारस के एक छोटे- से स्टेशन पर चल रहे इस बड़े घटनाक्रम से दिल्ली दरबार में बैठा वह "छोटे कद का बड़ा आदमी" पूरी तरह अनजान था।
ऐसे थे, भारत माँ के सच्चे सपूत श्री लाल बहादुर शास्त्री जी।🌹🌹
🙏आज उनकी 120 वीं जन्म जयंती पर कृतज्ञ राष्ट्र की विनम्र श्रद्धांजलि 🌹🌹🌹🙏
एक साहित्यिक पत्रिका से प्राप्त प्रेरक प्रसंग का संशोधित दृष्टांत!!
प्रस्तुति 👉 कमल किशोर दुबे