व्यंग्य

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नौटंकी या स्वांग

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  • अरूण कुमार जैन    

 

     कोलकाता में नृशंस ढंग से महिला डॉक्टर की हत्या की गई, उसने सम्पूर्ण विश्व को हैरत में डाल रखा है। भारत की छबि धूमिल हुई है, एक ही समय बंगला देश का तख्ता पलट और वहां हिंदुओं के खिलाफ सत्ता संघर्ष की आड़ में नृशंस हत्याएं । यह दोनों घटनाएं बंगाली मानसिकता पर प्रश्न चिन्ह खड़े करती है। यह अलग विषय है कि इसमें सांप्रदायिक तड़का कितना लगा हुआ है। परंतु दोनों ही घटनाओं ने हिटलर के नाजी कैंप की याद दिला दी है जहां भय और यातना देकर प्रताड़ित कर मारा जाता था। डॉक्टर की हत्या ने नाजियों को भी पीछे छोड़ दिया है। मारने के पहले भी ड्यूटी डॉक्टर को बुरी तरह मानसिक प्रताड़ना देने के लिए लगातार और लंबी लंबी ड्यूटी लगाई जाती थी। अभी और खुलासे होना है।

 

    इधर आई. एन. डी. आई. ए. की सहयोगी पार्टियां या तो चुपचाप बैठी रही या फिर बड़ी देर से और अनमने मन से उनकी प्रतिक्रिया सामने आई है। एक शर्मनाक घटना पर इन दलों की चुप्पी और भी ज्यादा शर्मनाक है मगर उसके बाद भी अपनी नाक ऊंची किए कई दलों के नेता घूमते नजर आ रहे हैं।  इनकी आंखों से मानवता और संवेदन शीलता दोनों का शील भंग हो चुका है। महिला डॉक्टर का ही शील भंग नहीं हुआ, इन राष्ट्रीय स्तर के दलों और इनके नेताओं का भी शील भंग हुआ है। जनता का इनके क्रिया कलापों से मोहभंग भी हुआ है।

 

     बेशर्मी की हद पार करते हुए एक महिला मुख्यमंत्री का जो चेहरा सामने आया है वह पूरी नौटंकी और निर्लज्जता के साथ उनके स्वांग रचने में माहिर होने का एहसास करा गया। मुंबई में फिल्मी दुनिया और थिएटर से पहले यानी लगभग 1911 के पहले कोलकाता का बंगाली थिएटर कहीं ज्यादा सक्षम और पुराना था। या कहें कि कोलकाता की स्टेज अभिनय क्षमता पुरानी और उन्नत थी और आज का कोलकाता का राजनैतिक नेतृत्व उसी अभिनय क्षमता को नए अभिनव अंदाज में प्रस्तुत कर रहा है। पुराने अभिनय में श्रेष्ठता थी और आज उससे भी ज्यादा अभिनय श्रेष्ठता के साथ निर्लज्जता और निरंकुशता का बघार लगाकर प्रस्तुत किया जा रहा है।

   घटना के विरोध में सड़कों पर प्रदर्शन होने लगे और तब वहां की मुख्यमंत्री ने भी स्थिति पर अपना स्पष्टीकरण और जिम्मेदारी निर्वहन के बजाए गैर जिम्मेदाराना व्यवहार करते हुए खुद न्याय की मांग करते हुए सड़कों पर एक प्रदर्शन निकाल दिया । प्रश्न उठना स्वाभाविक था कि यह प्रदर्शन किसके खिलाफ न्याय दिलाने की मांग करता है ? वे खुद बंगाल की न केवल मुख्यमंत्री हैं बल्कि  स्वास्थ्य मंत्री भी हैं और गृह मंत्री भी। तब यही समझ में आता है कि यह तृण मूल कांग्रेस की अध्यक्ष होने के नाते उनकी ही पार्टी के शासन का विरोध वे मुख्यमंत्री से कर रही थीं या तो यह जनता को मूर्ख बनाने की चेष्टा है अथवा वे खुद मूर्खता का सार्वजनिक प्रदर्शन प्रस्तुत कर रही थी। वे सठिया गई हैं और या उसके करीब हैं। उनकी उलट बासियां भारतीय राजनीति के एक नए इतिहास को गढ़ रहीं हैं। लज्जा विहीन, नैतिकता से परे, पद के मद का इससे बढ़कर और नशा कहीं देखने को नहीं मिलता, जहां खुद ही सरकार मामले के साक्ष्य मिटाने के लिए प्रतिबद्ध हो। हॉस्पिटल के प्रमुख प्राचार्य का तत्काल इस्तीफा स्वीकार कर चार घंटे के अंदर उसे दूसरी जगह नौकरी पर रख पुरस्कृत करने जैसा अति घटिया और स्तर हीन कार्य किया जाकर साक्ष्य जुटाने में व्यवधान पैदा करने की खुली चेष्टा, शर्महीनता का नया अध्याय लिख गया।

 

    कोलकाता और बंगाल सारे देश में कानून के साथ खिलवाड़ करने वाले और पुलिस प्रशासन के निक्कमेपन का, कानून व्यवस्था का चीर हरण करने वाले प्रदेश के रुप में कुख्यात हो गया है। अपनी लचर कार्यशैली और विरोधाभासी कार्यप्रणाली से लोकतंत्र की प्रणाली को बदनाम करने की हद तक कुचेष्टा, जनता के सामने ऐसे मामलों में धरना प्रदर्शन उनकी कमजोर और कामचोर इच्छा शक्ति का खुला उदाहरण है। मां, माटी, मानुष की बंगाली अवधारणा को ध्वस्त करते हुए उसने पुत्री हंता, निर्लज्ज और अमानवीयता का नंगा उदाहरण प्रस्तुत कर दिया है जिसे समाप्त करने में समय लगेगा, इसकी किसी को चिंता नहीं है।

 

   हर दिन नए तमाशे करना, नौटंकी खेलना और स्वांग रचना सत्ता प्रतिष्ठान का कोलकाता थिएटर की पुनर्स्थापना का प्रयास है। उच्च न्यायालय के लगातार सत्ता संस्थान को निष्पक्ष न्यायिक अथवा सीबीआई जांच के आदेश देना उसकी अपनी प्रतिष्ठा पर प्रश्नचिन्ह पैदा कर रहा है।  राज्यपाल के द्वारा सत्ता संस्थान पर की गई टिप्पणियों और कर्रवाई के खिलाफ इस पद की गरिमा के विरुद्ध बलात्कारी होने का प्रकरण दर्ज करना अनर्गल आरोप लगाना और उन्हें भयभीत करने की कोशिशें की गई। आखिर इस अभूतपूर्व महिला मुख्यमंत्री और कहां तक गिरेंगी और कितना रसातल में राज्य को लेकर जाएंगी, कहा नहीं जा सकता।  भारतीय प्रजातंत्र को ठेस पहुंचाने, खत्म करने और जनता का इस व्यवस्था के प्रति विश्वास उठाने की कोशिशें समय का सबसे बड़ा भद्दा व्यंग्य ही साबित होंगी।

 

कोशिशें है कि

बदनामी को

शहादत में बदला जाए ।

 

हारने, सत्ताच्युत 

होने से पहले

नौटंकी या स्वांग रचा जाए 

 

दहशतगर्दी का

गुंडाराज बनाकर

इतिहास बदला जाए ।

 

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श्री अरूण कुमार जैन भारतीय राजस्व सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। उन्होंने सेवा के दौरान अपने नियमित कार्यों के साथ राजभाषा के प्रचार – प्रसार के दायित्व का बखूबी निर्वहन किया। हिंदी सेवी श्री जैन को हिंदे एके प्रचार - प्रसार के उत्कृष्ट कार्यों के लिये अनेक संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया गया है। सेवानिवृत्ति के पश्चात साहित्य की कविता और व्यंग्य विधा के साथ  सम सामयिक विषयों पर भी कलम चला रहे हैं