जवानी की दहलीज पर ही ये पीढ़ी दिखने लगी बूढ़ी

     लंदन। साल 1996 से 2010 के बीच पैदा हुए अधिकांश लोग अब नौकरी-पेशा हो गए हैं और जवानी की दहलीज पर हैं, लेकिन यह पीढ़ी देखने में बूढ़ी दिखने लगी है। इनमें से अधिकांश की बायलॉजिकल उम्र वास्तविक उम्र से ज्यादा हो गई है।


       हाल ही में आई एक रिपोर्ट के अनुसार, जेन जेड, यानी 1996 से 2010 के बीच पैदा हुए लोगों में बायलॉजिकल उम्र का बढ़ना एक आम  समस्या बन गई है। उनके चेहरे पर झुर्रियां, त्वचा की समस्याएं और अन्य स्वास्थ्य मुद्दे देखने को मिल रहे हैं। इसका कारण मुख्य रूप से तनाव है। जानकारी के अनुसार, कोविड-19 महामारी ने जेन जेड पीढ़ी को पूरी तरह से बदलकर रख दिया। महामारी के दौरान उनके रिश्ते, स्वास्थ्य देखभाल और राजनीतिक माहौल में बड़े बदलाव आए, जिससे उनका मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित हुआ। जेन जेड एक ऐसी पीढ़ी है जो सोशल मीडिया से गहरे तौर पर जुड़ी हुई है और इस प्लेटफॉर्म पर वे खुद को परिपक्व दिखाने की कोशिश करते हैं। सोशल मीडिया पर जेन जेड के अधिकांश सदस्य शिकायत करते हैं कि उन्हें लोग अपनी उम्र से ज्यादा बूढ़ा समझते हैं।

     स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि इस पीढ़ी के जल्दी बूढ़े होने का मुख्य कारण स्ट्रेस हार्मोन, यानी कॉर्टिसोल है। जेन जेड लोगों के जीवन में तनाव एक अभिन्न हिस्सा बन चुका है। सबसे पहले उन्हें अकादमिक तनाव का सामना करना पड़ता है क्योंकि वे हमेशा दूसरों से आगे रहना चाहते हैं। इसके बाद कैरियर की चिंता होती है और नौकरी में अस्थिरता भी उनकी चिंता का कारण बनती है। साथ ही, सोशल मीडिया पर फॉलोअर्स की संख्या और इस प्लेटफॉर्म पर अपनी पहचान बनाने की चिंता भी उन्हें मानसिक दबाव में डालती है।

क्या है जेन जेड

जेन जेड का मतलब है, 1996 से 2010 के बीच पैदा हुए लोग  जेन जेड को बोलचाल की भाषा में ज़ूमर्स भी कहा जाता है जेन जेड के बारे में कुछ खास बातें... 

जेन जेड की पहचान डिजिटल युग, जलवायु चिंता, बदलते वित्तीय परिदृश्य, और कोविड-19 से हुई है 

जेन जेड के लोग इंटरनेट और सोशल मीडिया से ज़्यादा जुड़े हैं 

जेन जेड के लोग विविधता को महत्व देते हैं और अपनी खुद की अनूठी पहचान ढूंढते हैं

जेन जेड के लोग ईमानदारी और पारदर्शिता को महत्व देते हैं

जेन जेड के लोग कार्यस्थल में सहयोग और सामाजिक प्रभाव पर ज़्यादा ध्यान देते हैं

जेन जेड के लोग अकादमिक प्रदर्शन और नौकरी की संभावनाओं के बारे में ज़्यादा चिंतित रहते हैं। (साभार)