नकारात्मक शब्दों से बनती है मन में गांठ – नारायाण भाई

नकारात्मक शब्दों से बनती है मन में गांठ – नारायाण भाई
अलीराजपुर। वर्तमान समय मन का कमजोर होना, ज्यादा सोचने की आदत, भूतकाल की बांतों को भूल नहीं पाना, किसी बात का भय सताना, बिना कारण चिंता करना जैसे विचार हमारे शरीर में खरपतवार की तरह बढ़ते जा रही है जिसके कारण व्यक्ति की समस्याएं भी बढ़ रही हैं । इससे हमारा मनोबल भी कमजोर होता जा रहा है जिसका प्रभाव हमारे स्वास्थ्य पर भी पड़ता है। चाहे हम अच्छी दवाई, भोजन ही क्यों नहीं ले रहे हैं फिर भी हम संपूर्ण रीति से स्वस्थ नहीं रह पाते है। इसका मुख्य कारण है हमारे नकारात्मक विचार ।जब कोई नकारात्मक विचार बार बार मन में आते हैं या एक खास तरह की नकारात्मक परिस्थिति लम्बे समय तक बनी रहती है तो उस नकारात्मक संकल्प की मन में गांठ बन जाती है । किसी ने आप को क्रोध से कहा, ' तुम घटिया हो' । आप ने इस बात को पकड़ लिया और मन में इसी शब्द से दुखी होते रहे और उन लोगों से बातों में या व्यवहार में टकराने लगे ।
मन का यह नकारात्मक शब्द एक गांठ का रूप ले लेता है । यह गांठ किसी न किसी बीमारी के रूप में फूटेगी । कोइ भी असाध्य रोग की जड़ कोई नकारात्मक शब्द ही है जो आप के मन में गूंज रहा है । यह विचार इंदौर से पधारे जीवन जीने की कला के प्रणेता ब्रहमा कुमार नारायण भाई ने महाराजा सुरेंद्र सिंह शासकीय चिकित्सालय में आयोजित तनाव मुक्त, ध्यान एवं उपचार विषय पर आयोजित कार्यशाला में व्यक्त किए। डॉक्टर व नर्स स्टाफ के लिए आयोजित कार्यशाला में नारायण भाई ने कहा कि बड़े लोग या महान संत सभी से सम्मान चाहते हैँ । इतनी बड़ी दुनिया में कोई न कोई उन्हें भलाबुरा कह देता है जिसे वह अपना अपमान समझ लेते हैँ और अंदर ही अंदर आहत होते रहते हैं । बोलते बहुत अच्छा हैँ परन्तु मन से अपमान की गांठ नहीं जाती । बड़े लोग झूठे वादे भी करते हैँ । उन्हे पता होता है यह कार्य पूरा होने वाला नहीं है । उनका यह झूठ मन में कांटे की तरह चुभता रहता है, जिस से उन के मन में सूक्ष्म घाव बन जाता है जो कि शरीर में केंसर आदि के रूप में प्रकट होता है । ऐसे ही प्रत्येक व्यक्ति के मन में अपमान, झूठ, लाचारी, निराशा, झूठे आरोप या कोई और नकारात्मक बात मन में चलती रहती है । साधारण लोग शराब पीते है या दूसरे नशे करते है जिसके प्रभाव से यह दुःख कुछ समय के लिये भूल जाता है । योगी सेवा में लगे रहते है । जब तक सेवा करते है तब तक वे इस सूक्ष्म दुःख से बचे रहते है । सेवा खत्म होते ही फिर उसी दुःख से पीड़ित होते रहते है । उन्होने कहा कि कोई भी नकारात्मक शब्द जो आप को अंदर ही अंदर आहत करता है, तुरंत उस शब्द को बदलो । उसके बदले में वह शब्द सोचो व बोलो जो आप सुनना चाहते थे । अपमान आये तॊ सम्मान सोचो, दुःख आये तॊ सुख सोचो, निराशा आये तॊ प्रसन्नता सोचो । कैसी भी विपरीत इमोशन हो, कोइ कुछ कह दें, वह शब्द को ईश्वर को समर्पित करके मन को हल्का बना देना है। यही तनाव से मुक्त होने की सर्वश्रेष्ठ विधि है। कार्यक्रम का प्रारंभ में डॉक्टर कैलाश गुप्ता सीनियर सर्जन ने संचालन करते हुए बताया कि ध्यान श्रेष्ठ विधि है जिससे हम काफी हद तक तनाव से मुक्त रह सकते हैं। ध्यान हमारे मन को शक्तिशाली बनाता है। कार्यक्रम में मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर प्रकाश धोखे ने बताया कि हमारी गलत सोच, गलत दिनचर्या के कारण मन निर्बल, कमजोर होता जा रहा है, न चाहते भी हम गलत सोच लेते हैं जिससे हमारा शरीर रोगों का घर बन जाता है, इससे बचने के लिए ध्यान औषधि के रूप में कार्य करता है । यह एक सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिक पद्धति है जो हमें अपने जीवन में अपनाना चाहिए। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में नर्सिंग स्टाफ, डॉक्टर गीता रावत, डॉक्टर मनीषा मेडिकल ऑफिसर , डॉ जमुना नोडल ऑफिसर भी उपस्थित थे।
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