पिछले महीने 13 जनवरी से शुरू हुए प्रयागराज महाकुम्भ में अब तक देश – विदेश के 41 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं ने पवित्र नदियों गंंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम पर डुबकी लगा चुके हैं । आगामी 26 फरवरी को महाशिवरात्रि के शुभ अवसर पर अमृत स्नान के साथ महाकुम्भ का समापन होगा। महाकुम्भ में स्नान कर विश्व के सबसे बड़े समागम के साक्षी बने श्री कमल किशोर दुबे ने अपने अंतर्मन के अनुभव को वसुधैव कुटुम्बकम का साक्षात अप्रतिम परिदृश्य आलेख में साझा किए हैं.....  

 

 

प्रयागराज महाकुम्भ.....

वसुधैव कुटुम्बकम का साक्षात अप्रतिम परिदृश्य

  • डॉ. कमल किशोर दुबे 

 

     विश्व आश्चर्यचकित है, होना भी चाहिये। इतना वृहत समागम!  न भूतो न भविष्यति !

    किसी ने न कोई मास्क लगाया है, न किसी प्रकार की सामाजिक दूरियाँ हैं। यहाँ न तो कोई कोई हाइजीन है, और न ही कोई सैनिटाइजर्स हैं !! करोड़ों मानव एक ही नदी में, एक सीमित जगह पर स्नान कर रहे हैं और कोई महामारी भी नहीं फैल रही। नाना प्रकार के सारे कीटाणु, वायरस और जीवाणु दुम दबाये पड़े हैं। जैसे वे भी मोक्ष को प्राप्त हो गए हों।

 

कैसी अटूट श्रद्धा है ?

कैसी पावन गंगा माँ है ??

कैसी अटूट आस्था है और कैसा महाकुम्भ है? कैसा अद्भुत और अपरिमेय है हमारा सनातन धर्म ?  कैसा अमृत स्नान है ?

इसका कैसा विज्ञान है ?

 ग्रहों, सितारों का कैसा योग है ?

 जहाँ असंख्य, अपरिमित जन-सैलाब एक ही उद्देश्य को लेकर, एक ही शहर में उमड़ रहा है। सबका एकमात्र उद्देश्य है -

पापों का नाश और मोक्ष की प्राप्ति। यहाँ न कोई जाति-पाँति का भेद है, न कोई वर्ण का भेद। यहाँ न कोई ब्राह्मण, न क्षत्रिय, न वैश्य और न शूद्र, न ही कोई ऊँचा और न ही कोई नीचा। सब एक समान। यही है सनातन धर्म का सत्य, सबका एक ही लक्ष्य ! यही है भारत की पुण्य धरा की महिमा।

 

हे! आधुनिक विज्ञान के प्रणेताओं ! बुद्धिमानों, वैज्ञानिकों, कर्णधारों !!

 

     एक बार शान्तिपूर्वक, शांतचित्त से बैठ कर गहन चिंतन करो! लाखों नहीं, करोड़ों लोग एक साथ एक ही स्थान पर एकत्रित ही नहीं, परस्पर एक दूसरे से पहले स्नान करने का प्रयास करते हुए, आपस में मिलते-जुलते, एक-दूसरे से एकाकार हो रहे हैं।

इसके बावजूद, यहाँ कोई बीमारी, कोई महामारी क्यों नहीं फैल रही ??

 प्रयास करें यह जानने का कि मोक्ष क्या होता है ?

क्या होते हैं पाप और पुण्य ? क्या होता है पुनर्जन्म ?

क्या आधुनिक विज्ञान इसे समझ सकता है ? इसके पीछे के अध्यात्म को, अटूट आस्था को जान सकेगा !!

आधुनिक विज्ञान के प्रचेताओं, वैज्ञानिकों, तुम्हें अभी बहुत कुछ जानना शेष है।

 

इस आस्था के आगे, धर्म के आगे झुकना सीखिये !

 यह अटूट आस्था का विज्ञान, धर्म का विज्ञान शायद आधुनिक विज्ञान से भी बड़ा है !

आधुनिक विज्ञान के प्रचेताओं, अपने तर्क और ज्ञान को परे रखकर थोड़ा विनम्र बनो, झुकना सीखो!

कहते हैं झुकने से विनम्रता आती है, विनम्रता से ज्ञान में वृद्धि होती है।

     बिना किसी आमंत्रण के, बिना किसी पद, धन लाभ के इतने वृहत परिमाण में, हज़ारों किलोमीटर दूर से, ट्रेन, वायुयान, बसों में स्थान नहीं मिलने, निजी वाहनों के परिवहन में भी असुविधा होने के बावजूद कोटि-कोटि स्त्री-पुरुष, बालक-वृद्ध, अमीर-गरीब, जिसे जो साधन मिला, उससे निर्बाध रूप से चले आ रहे हैं ! देश ही नहीं विदेशों से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहाँ आ रहे हैं। और ... सबसे बड़ा विचारणीय तथ्य तो यह है कि "जो लोग सामान्य रूप से एक किलोमीटर भी पैदल चलने में असमर्थ हैं, वे भी सहजता से 15-20 किलोमीटर तक पैदल चलने में समर्थ कैसे हो पा रहे हैं ?" विश्व के अधिकतर देशों की तो इतनी जनसंख्या भी नहीं है, जितना जन सैलाब यहाँ प्रतिदिन आ रहा है।  विचारणीय विषय यह है कि "ऐसा क्या है इस सनातन धर्म में, आस्था में, पाप-पुण्य, मोक्ष और पुनर्जन्म के सिद्धांत में ?" सोचिए, विचार कीजिए, अपने तर्क, साक्ष्यों और प्रमाणों की कसौटी पर तौलते रहिए। परीक्षण करते रहिए !! शायद कोई प्रमाण, कोई साक्ष्य हाथ लग जाये।

       तब तक हम तो यही दोहरायेंगे ...

अयं बंधुर्यन्नेति गणना लघुचेतसाम्।

उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ॥

 

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया:।

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत् ॥

     "वसुधैव कुटुम्बकम" का इससे बड़ा साक्ष्य, इससे ज्वलंत प्रमाण और क्या चाहिए।

 जय श्रीकृष्ण, जय श्रीराम ।।ॐ नमः शिवाय।।

और ... अंत में पुण्यदायिनी, मोक्षदायिनी, सुरसरि माँ गंगा।

        ।।ॐ हर हर गंगे।।

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डॉ. कमल किशोर दुबे