एआई से हम क्यों डरें !
व्यंग्य.....
एआई से हम क्यों डरें !
* डा. विनोद पुरोहित
दफ्तर में अफरातफरी का माहौल था। सामान्य तौर पर शाम 5:00 बजे लोग दफ्तर छोड़ने की फिराक में होते हैं, लेकिन उस दिन खेमों में कनफूसियां चल रही थीं। चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं। खासकर युवा जिनकी सर्विस अभी कई साल की बाकी थी। वे अपने भविष्य को लेकर ज्यादा चिंतित थे। ज्ञानपाडे के रिटायरमेंट को अभी 8-10 साल होंगे, लेकिन उन्हें कोई संताप नहीं। वह हिरण की तरह निश्चिंत यहां से वहां कुलांचे भर रहे थे। दरअसल दफ्तर में उस दिन एआई यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर कार्यशाला आयोजित करवाई गई थी। एक्सपर्ट ने एआई की खूबियां गिनाईं तो खामियों पर भी विस्तार से अपनी बात रखी। उसने कहा कि सजग नहीं हुए और अपनी क्षमताओं को नहीं बढ़ाया तो एआई से आपकी नौकरियों के लिए बड़ा खतरा पैदा हो सकता है। ज्यादातर कार्यो में मानव पर निर्भरता कम हो जाएगी। इसके बाद से ही कर्मचारियों में दहशत का माहौल है। एक्सपर्ट ने एआई की कई खूबियां भी बताई लेकिन उन्हें छोड़कर लोग नौकरी पर खतरे वाली बात पर अटक गए। यह मानवीय प्रकृति होती है कि मनुष्य अपने फायदे की बात ज्यादा सोचता है। इसमें दफ्तर का भी फायदा हो जाए तो यह दफ्तर की किस्मत है। यही मानव और मशीन की मशीन में बुनियादी फर्क है।
बहरहाल, ज्ञानपाडे की चहक अन्य लोगों को खटक गई। कुछ लोगों ने घेर कर उसे खरी-खरी सुनाते हुए कह ही दिया कि क्या पागल हो गए हो… नौकरी पर खतरा है और तुम ठठाकर हंस रहे हो… मौज में हो। ज्ञानपाडे ने संजीदा होते हुए कहा- तुम लोग इंसानी क्षमताओं को कमजोर आंक रहे हो। इसके बजाय यह सोचो कि एआई के दौर में इंसानों के लिए क्या-क्या संभावनाएं हैं। वह क्या कौशल है जो सिर्फ और सिर्फ हमारे पास है, मशीन के पास नहीं है। इस पर किसी ने कहा कि मशीन इंसानी क्षमताओं से ज्यादा ही काम कर सकती है। ज्ञानपाडे अंगुलियों को नचाते हुए अपने अंदाज में बोले- इसलिए तो हमें डर नहीं है, क्योंकि हम काम कहां करते हैं। वह डरे जो काम करता है। हम जो करते हैं, वह मशीन के बस की बात नहीं है। मशीन बॉस की खुशामद या चिरौरी नहीं कर सकती। मशीन उन्हें लाला की गुलाब जामुन और कचोरी लाकर नहीं दे सकती। मशीन झूठ नहीं बोल सकती और सच दफ्तर के माहौल में टिक नहीं सकता। वह दफ्तर ही क्या जहां एक-दूसरे की और प्रबंधन की बुराई न हो। दफ्तर वह जगह है, जहां निंदा पुराण का पारायण हमेशा चलता रहता है। लोग श्रद्धा भाव से रसपान करते हैं और लाभान्वित होते रहते हैं। तकनीक वे किस्से कहां से लाएगी, जो हम दफ्तर में चाय-पान के बाद बचे समय में कहते-सुनते हैं। मशीनी कौशल तो इंसान देरसबेर सीख भी जाएगा, लेकिन इंसान की यह फितरत मशीन के बस की बात नहीं है। ज्ञानपाडे के फंडे को सुनकर उनकी प्रकृति के साथियों ने राहत की सांस ली। इनमें वे लोग भी थे, जिनके पास चुगली करने का हुनर था। कुछ चलते-फिरते रेडियो थे, तो कुछ एकदम चुप्पा यानी घुन्ना। दफ्तर में घुन्ना किसिम के लोग किसी का भी काम डालने की क्षमता रखते हैं… इन्हें साइलेंट किलर भी कह सकते हैं। ये सब लोग अब बेफिक्र हैं कि ऐसा कोई सॉफ्टवेयर नहीं बना और न ही बन सकता जो उनके इन कौशल को अडॉप्ट कर सके। थोड़ी देर पहले जहां लोगों के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थी, अनिश्चितता का भाव उभर रहा था, वहां निश्चिंतता थी। माहौल को हल्का करते हुए यह कहते हुए ज्ञानपाडे उठ खड़े हुए कि चलो भाइयों आज ओवर टाइम हो गया और गुनगुनाते हुए चल दिए…अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम। दास मलूका कह गए, सब के दाता राम।
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डॉ. विनोद पुरोहित वरिष्ठ पत्रकार हैं। उन्होंने अनेक समाचार पत्रों में सम्पादक का दायित्व भी बखूबी निभाया है। उनकी पैनी नजरों से समाज का कोई भी पक्ष छुपा नहीं रहा है। जब कहीं कुछ विरोधाभाष दिखाई देता है... पत्रकार के साथ उनके अंदर छुपा व्यंग्यकार जाग्रत हो जाता है और वे उस व्यवस्था पर प्रहार करने से नहीं चूकते। “एआई से हम क्यों डरें ” व्यंग्य में डा. पुरोहित के चुटीले अंदाज से अपनी कोमल भावनायें व्यक्त की हैं।