एक शिक्षक की पाती शिक्षकों के नाम 

 

शिक्षक दिवस के अवसर पर  अध्यापकों से मन की बात

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राष्ट्र निर्माता ख्याति प्राप्त बाल मन परत खोलने में माहिर!!

अभाव में जीवन व्यापन के आदी !!!

समाज- सरकार द्वारा साल में एक बार याद करने वाले !!!!

 

आदरणीय सभी अध्यापकगण ,

शिक्षक दिवस के शुभ अवसर पर आपके द्वारा पढाए गये विद्यार्थियों एवं अभिभावकों की ओर से सादर प्रणाम।

कुशलोपरांत समाचार यह है कि आपने अपनी शिक्षण कला के माध्यम से अभी तक जो अध्यापन कार्य करवाया है, उसके प्रति मैं आपका संपूर्ण शिक्षा जगत की ओर से आभार एवं साधुवाद प्रकट करता हूं।

       आदरणीय अध्यापक जी, शिक्षक जीवन में मैंने देखा -परखा है कि अध्यापक समाज को केवल "शिक्षक दिवस" के दिन ही दिखावे के लिए मान -सम्मान संबोधन सुनने को मिलता है। बाकी वर्ष भर संबोधनों से आप बखूबी वाकिफ हैं !! सेवानिवृत्ति के बाद समाज, सरकार और शिष्यों से इस तरह के रूखेपन के बारे में उनके हृदय टटोलने पर जो अभिव्यक्ति सुनने को मिलीं। उन्हीं को आभा- रेखाचित्रों को जनमानस के समक्ष उजागर करने के उद्देश्य से मन में आया कि भारतीय अध्यापक समाज के समक्ष पत्र के माध्यम से मन की बात सांझा करूं। 

      मन की बात लिखने-कहने के पीछे मंशा बस इतनी ही है कि हम अध्यापक समाज आज़ पांच सितंबर के दिन "शिक्षक दिवस" के प्रकाश में आत्म सम्मान के लिए आत्मावलोकन, आत्म-मंथन करें कि जाने अनजाने में कहां चूक हो गई अथवा हो रहीं है ? यद्यपि आप के आर्थिक सामाजिक दुःख दर्द पक्ष इसमें शामिल नहीं किया गया है, क्योंकि आज का दिन आत्मसम्मान के लिए आत्म-मंथन का है। इसलिए उस पक्ष को यह मान कर नज़र अंदाज़ किया गया है कि आर्थिक-सामाजिक मान सम्मान पर समाज और सरकार और शिष्य सोच विचार करें।

      अध्यापक जी,

हमारी कक्षाओं में अभी भी छात्रों के लिए हमारी-आपकी ओर से शिक्षण में वह नवाचार नहीं हो रहे हैं जिसकी 21वीं सदी और नई शिक्षा नीति की सफलता के लिए जरूरी है। कितना अच्छा हो कि रोज हम अध्यापक अपने सफलतम अनुभव से कक्षा शिक्षण में पठन-पाठन करें और आपस में पत्र लिखकर अपने सफल अनुभव को साझा करें। हमारे सफलतम अनुभव को साझा करने से

अन्य अध्यापक साथियों को अपनी शिक्षण शैली में सुधार करने का अवसर मिलेगा और हमारे विद्यार्थी लाभान्वित होंगे।    

      आपके कक्षा शिक्षण में नवाचार की फुहार यहां वहां बिखरेगी तो हो सकता है और नए नवाचार अंकुरित हों।    

       सेवानिवृत्त अध्यापक विचार यह है कि है हम शिक्षक समुदाय की ओर से कक्षा शिक्षण में नवाचार की नित रोज सार्थक पहल हो जाए तो समाज और सरकार को भी आईना दिखाया जा सकता है। मेंने अनेक कठिनाईयों के बावजूद हर साल उत्कृष्ट परिणाम देकर एवं "कक्षा शिक्षण में नवाचार प्रयोग" किताब लिख कर ऐसा किया है !!

      नये नये प्रयोग के माध्यम से कक्षा में बैठे बालक की 'बाल मन परत" खुलने लग जाएगी तो कौन जाने कोई फिर से अब्दुल कलाम मिसाइल मैन बन जाए। कौन जाने आज हमारी कक्षा मैं बैठा विद्यार्थी कल महान वैज्ञानिक बन कर मानवता की सेवा करने लग जाए। सेवानिवृत्त अध्यापक का विचार तो यहां तक कहता है कि अध्यापक गण मन में ठान लें कि वे अपनी शिक्षण कला में माहिर हो कर रोज़ विद्यालय में कुछ न कुछ नया करेंगे तो हो सकता है अध्यापक समाज की अपनी धूमिल प्रतिष्ठा पुनः लौट आए और अपनी पढ़ाई हुई पीढ़ी का एक नया संसार बन जाए। जिसमें हमारे अपने बाग- बगीचे हों। फुल फुलवारी हों और हां, इठलाती बलखाती सुंदर - सुंदर तितलियां भी !!

अध्यापक साथियों, बस यूं ही बैठ गया आज सुबह-सुबह कक्षा शिक्षण में नवाचार की बात करने। क्या करूं क्षेत्रीय शिक्षा महाविद्यालय भोपाल द्वारा 1981-85 का तैयार शिक्षक हूं न।

आदरणीय अध्यापक जी मैंने पाया है कि हम शिक्षक एक सुंदर संसार की रचना करने में पूर्ण सक्षम है। भारत, अमेरिका और यूरोप में कार्यरत कामयाब शिष्यों से 20-25 साल बाद मिलकर, उनसे बातचीत करके अनुभव हुआ है कि कक्षा का हर विद्यार्थी उच्च कोटि का ज्ञानार्जक और अनुसरणकर्ता होता है । इस अध्यापक की सोच अच्छी लगे तो उठा लो कुछ नया करने का बीड़ा। उठा लो कलम और हो जाओ शुरू अपने अनुभव को इधर उधर ग्रुप में भेजने -बिखेरने के लिए। शिक्षा जगत आपका ऋणी रहेगा। लो, मैं भी शिक्षक दिवस पर मन की बात कहां से कहां ले गया ! भावावैग में कहां-कहां बह गया !! क्या-क्या कहने लग गया !!!

    गुरु गोविंद दोनों खड़े। मैं तो गुरु के ही लागु पांव। यही तो गुरु है जो करवाता है साक्षात्कार ज्ञान का, विज्ञान का। धरती का, आकाश का और समुद्र के पाताल का। अरे हां याद आया , गुरु ही तो थे द्रोण और वशिष्ठ। चाणक्य भी तो गुरु ही थे। गुरु तो साक्षात ब्रह्म है। अरे पंचतंत्र के रचयिता गुरु विष्णु ही तो थे जिन्होंने सारे के सारे नीति शास्त्र को पठन-पाठन के माध्यम से मित्र भेद , मित्र लाभ, लब्ध प्रणाश और अपरीक्षित कारक की जानकारी पशु- पक्षी एवं जानवरों के वार्तालाप के माध्यम से शिक्षाप्रद बनाकर महिलारोप्य के राजा अमर शक्ति के उदंड ,अज्ञानी, मूर्ख और अविवेकी दुर्जन नीत पुत्र बहु शक्ति , अग्र शक्ति और अनंत शक्ति को मात्र छः महीने में विद्वान, गुणी और कलाओं में पारंगत करने में सफलता पाई थी। प्यासे कौवे को घड़े से पानी पीना सिखलाया था। आजकल तो हमारे पास अच्छे-अच्छे आधुनिक साधन हैं नवाचार से पढ़ाने के लिए। आचार्य विष्णु दत्त भी तो अध्यापक ही थे। याद आया कि एक बालक साधारण बालक को मगध साम्राज्य का श्रेष्ठ राजा बना दिया था।

जय हो अध्यापक संसार की।

जय हो कक्षा में 40 मिनट के सरदार की।।

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डॉ. बालाराम परमार 'हॅंसमुख '.

सेवानिवृत्त शिक्षक

 15 वर्ष की आयु में पांचवीं कक्षा पास, 6 साल प्राथमिक शिक्षक नीमच, आमला, खरगोन एवं पोर्ट ब्लेयर । 17 साल स्नातकोत्तर शिक्षक पोर्ट ब्लेयर, पालकाड, सिलचर, बैरागढ़, इटारसी एवं गांधी नगर। 6 साल उप व प्रभारी प्राचार्य देहु रोड पूणे , नांदेड़, शोलापुर, चाकुर एवं धुलिया ( महाराष्ट्र) एवं 3 साल प्राचार्य चैनानी ऊधमपुर जम्मू-कश्मीर। 3 साल राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा , बेंगलुरु में कार्यक्रम अधिकारी। 2007 में एनसीईआरटी एवं 2010 में केंद्रीय विद्यालय संगठन का राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता।