एम्स भोपाल ने एचएमपीवी के बढ़ते मामलों पर दिशानिर्देश जारी किए
एम्स भोपाल ने एचएमपीवी के
बढ़ते मामलों पर दिशानिर्देश जारी किए
भोपाल। भारत में ह्यूमन मेटाप्नेमोवायरस (एचएमपीवी) के बढ़ते मामलों को देखते हुए भोपाल के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ने सुरक्षा और जागरूकता के लिए विस्तृत दिशा निर्देश जारी किए हैं। संस्थान ने वायरस के प्रसार को रोकने के लिए सावधानी बरतने और सार्वजनिक स्वास्थ्य जागरूकता बढ़ाने पर जोर दिया है। एम्स भोपाल द्वारा जारी मीडिया एडवायजरी में बताया गया है कि एचएमपीवी एक श्वसन वायरस है, जिसे पहली बार 2001 में पहचाना गया था। यह वायरस मुख्य रूप से श्वसन तंत्र को प्रभावित करता है और छोटे बच्चों, बुजुर्गों और कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों के लिए अधिक जोखिमपूर्ण हो सकता है।
एम्स भोपाल के कार्यपालक निदेशक प्रो. (डॉ.) अजय सिंह ने कहा, "एम्स भोपाल एचएमपीवी या ऐसे किसी भी प्रकार के श्वसन संक्रमण के प्रकोप को संभालने के लिए पूरी तरह तैयार है। हमारे पास अनुभवी स्वास्थ्यकर्मियों की टीम, उन्नत जांच प्रयोगशालाएं और अत्याधुनिक सुविधाएं हैं, जो यह सुनिश्चित करती हैं कि हम किसी भी आपात स्थिति में त्वरित और प्रभावी रूप से कार्य कर सकें।” एम्स भोपाल में श्वसन वायरस की जांच के लिए अत्याधुनिक सुविधाएं उपलब्ध हैं, जिनमें आरटी-पीसीआर (रिवर्स ट्रांसक्रिपटेस पोलीमरेज़ चेन रिएक्शन) शामिल है, जो एचएमपीवी का पता लगाने के लिए स्वर्ण मानक (गोल्ड स्टैंडर्ड) माना जाता है। इसके साथ ही, अस्पताल में एचएमपीवी के रोगियों के लिए पर्याप्त सामान्य और आइसोलेशन बेड की व्यवस्था है, तथा गंभीर रूप से बीमार रोगियों के लिए जीवन रक्षक प्रणाली (वेंटिलेटर) से सुसज्जित आईसीयू बेड भी उपलब्ध हैं। नमूनों की जांच एम्स भोपाल के उन्नत माइक्रोबायोलॉजी विभाग में की जाती है, जिससे समय पर और सटीक निदान सुनिश्चित होता है। प्रो. सिंह ने आगे कहा, "एम्स भोपाल सार्वजनिक स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है और हर आपात स्थिति के लिए पूरी तरह तैयार है।"
एचएमपीवी के लक्षण –
यह वायरस मुख्य रूप से संक्रमित व्यक्ति के खांसने या छींकने से निकलने वाली श्वसन बूंदों के माध्यम से फैलता है। इसके अलावा, संक्रमित व्यक्ति के सीधे संपर्क में आने या दूषित सतहों को छूने के बाद आंख, नाक या मुंह को छूने से भी संक्रमण हो सकता है। एचएमपीवी के सामान्य लक्षणों में बुखार, नाक बहना, गले में खराश, खांसी, सांस लेने में कठिनाई, घरघराहट और थकान शामिल हैं। दुर्लभ मामलों में यह निमोनिया और ब्रोंकियोलाइटिस का कारण बन सकता है। स्वस्थ लोग आमतौर पर बिना किसी जटिलता के ठीक हो जाते हैं, लेकिन छोटे बच्चों, बुजुर्गों और अस्थमा, हृदय रोग जैसी पुरानी बीमारियों से पीड़ित लोगों के लिए यह वायरस गंभीर हो सकता है।
एचएमपीवी से बचाव
इसके बचाव के लिए कुछ आवश्यक सावधानियां बरतनी चाहिए, जैसे कि साबुन और पानी से कम से कम 20 सेकंड तक हाथ धोना, भीड़-भाड़ वाली जगहों पर मास्क पहनना, खांसी या छींक आने पर कोहनी या टिशू से मुंह और नाक को ढकना, बार-बार छुए जाने वाली सतहों को साफ और कीटाणुरहित करना, और फ्लू व निमोनिया के टीके लगवाना शामिल है। ये उपाय एचएमपीवी से बचाव के लिए कारगर हैं ।