जाकिर नाइक और जया किशोरी.... आलेख .... विजय मनोहर तिवारी
भारत से भागकर विदेशों में भारत के खिलाफ जहर उगलने वाला जाकिर नाइक हाल ही में पाकिस्तान की यात्रा पर गया था। यात्रा के दौरान ऐसे अनेक वाकये हुये हैं जिनके कारण उसे हंसी का पात्र बनना पड़ा और उसकी पाकिस्तान में काफी आलोचना भी हुई। इधर भारत में जया किशोरी अपने बैग को लेकर मीडिया में सुर्खियां बटोर रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार श्री विजय मनोहर तिवारी ने इन दोनों के आचार, विचार और व्यवहार पर अपनी बात बेबाक ढंग से जाकिर नाइक और जया किशोरी आलेख में लिखी हैं।
जाकिर नाइक और जया किशोरी
- विजय मनोहर तिवारी
विषय संवेदनशील है। इसलिए पहले ही साफ कर दूँ कि दोनों विभूतियों की कोई तुलना नहीं है। दोनों चर्चाओं में हैं। लाहौर की बादशाही मस्जिद में एक नौजवान के सवालों ने जाकिर नाइक की तहमद खोलकर रख दी है। जया किशोरी अपने एक ऐसे महँगे बैग की वजह से सुर्खियों हैं, जो बछड़े की चमड़ी से बनता है। दोनों केवल बोलते हैं। यही पेशा है उनका। आमदनी का जरिया। भारत और पाकिस्तान के करोड़ों बेवकूफ धर्म और मजहब के नाम पर इन जैसों के धँधे चमकाते हैं। असल जिंदगी में ये कुछ करने लायक नहीं हैं। सोशल मीडिया पर इनकी बदनामी भी कम्बख्त इनकी टीआरपी बढ़ा जाती है...
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जाकिर नाइक के पाकिस्तान दौरे पर मैं पहले भी लिख चुका हूँ। लेकिन असली ड्रामा तो लाहौर विश्वविद्यालय के एक प्रतिभाशाली नौजवान के सवाल पर हुआ। वह भी बादशाही मस्जिद में मजहब के ठोस बुद्धि ठेकेदारों के बीच। पूरे दौरे में जाकिर की लगातार किरकिरी हुई और उसे पाकिस्तान के युवा सोशल मीडिया पर जाकिर नाइक नहीं बल्कि जाकिर नालायक कह रहे हैं।
वाजिद अहसास नाम के बीस साल के इस नौजवान ने इस्लामियों की भरी भीड़ में कहा कि मैं एक विद्यार्थी हूँ। चार साल से मजहब की प्रेक्टिस नहीं करता। मैं हर काम समय पर करता हूँ। सबकी मदद करता हूँ। मैं एक अच्छा बेटा हूँ। एक अच्छा दोस्त हूँ और मेरी जिंदगी अच्छे से गुजर रही है। ऐसे में मजहब की जरूरत कहाँ पड़ती है? उसने अपने लंबे सवाल के आखिर में यह भी कहा कि आप इसका कोई जटिल दार्शनिक जवाब न दें, मुझे आपसे व्यवहारिक और तार्किक जवाब चाहिए।
जवाब देने में नाकाम जाकिर की सिट्टी-पिट्टी गुम है। वह तू-तड़ाक पर उतर आया और अपने बेटे से भी छोटी उम्र के वाजिद से कह रहा है कि मेरे पास अरबों रुपए हैं, अरबों की कारें हैं। तेरे पास क्या है? मुझे लाखों लोग सुनते-मानते हैं, तुझे कितने लोग फॉलो करते हैं? यह वीडियो पूरी दुनिया में वायरल है। वाजिद रातों-रात हिट हो गया है। उसके इंटरव्यू चल रहे हैं।
जाकिर नाइक बिना मजहबी प्रेक्टिस के खुशगवार जिंदगी के बारे में सुनकर पहले वाजिद से कह रहा था कि जो इस दुनिया को ही जन्नत मानकर खुश हैं, वे काफिर हैं। एक मुसलमान के लिए यह दुनिया इम्तहान है और उसे आखिरत यानी मरने के बाद की चिंता करनी चाहिए।
इस जवाब में ही वाजिद ने उसे सरेआम लपेट दिया। एक तरफ वह काफिरों को गरिया रहा है और दूसरी तरफ अपनी अरबों की संपत्ति पर ऐसा घमंडी एलान करके ऐसे बता रहा है कि जन्नत के असली मजे तो वह ले रहा है। जाकिर का यह कार्यक्रम सर्वाधिक मजे ले-लेकर सुना गया है। पाकिस्तान का पढ़ा-लिखा तबका आयोजकों को कोस रहा है। जाकिर को इस्लामी स्कॉलर बताकर बुलाया गया। लोग कह रहे हैं कि भारत सरकार ने इस कम्बख्त को भारत से भगाकर बोझ कम किया है।
ठीक इसी समय भारत के सोशल मीडिया पर एक नौजवान कथावाचक जया किशोरी चर्चित हैं। उनकी एक तस्वीर एक ऐसे फैशनेबुल महँगे बैग के साथ वायरल हुई है, जिसकी कीमत कई लाख रुपए है और इस बैग को बनाने वाली कंपनी गाय के चमड़े का इस्तेमाल करती है। जया किशोरी की एक सफाई भी आई है, जिसमें उन्होंने कहा है कि वे कोई संन्यासी नहीं हैं। इसलिए बैग को लेकर किसी प्रकार की कसौटी तय न की जाए।
मुझे वर्षों पहले वृंदावन के एक ऐसे ही कथावाचक के साथ मुलाकात याद आई। वह बहुत युवा और आस्था-संस्कार जैसे चैनलों के सेलिब्रिटी कथावाचक थे। शुरुआत सामान्य ढंग से हुई थी। लेकिन जल्दी ही किस्मत चमकी। किसी नौकरी में दिल्ली में वर्षों से पापड़ बेल रहे उनके बड़े भाई ने दिल्ली में उनके इवेंट मैनेजमेंट का काम संभाला। कुछ सस्ते आयोजनों में लाँच किया। बाद में कुछ संगीत मंडलियाँ जुड़ गईं और हिट होने के कुछ ही वर्षों बाद वे मुझे बता रहे थे कि दुबई और सिंगापुर में अगले साल की बुकिंग है। इस साल इतने प्रोग्राम हुए। अगले तीन साल के इतने बुक हो चुके हैं।
वे पैसा छूते नहीं थे और एक गोशाला चलाते थे। प्रोग्रामों का पैसा उनके ही एक ट्रस्ट में आता था और उनके बड़े भाई दिल्ली में शानदार ढँग से सेटल हो चुके थे। वे गृहस्थ थे। घर में बच्चों का शोर था और उनका घर मुझे कहीं से एक धार्मिक या आध्यात्मिक विभूति का नहीं लग रहा था। मैं धंधेबाज शब्द का प्रयोग नहीं करूंगा मगर वे विशुद्ध कारोबारी थे और अपने अगले प्रोग्रामों की सूची वैसे ही देख रहे थे, जैसे उस समय मुंबई में जॉनी लीवर करते होंगे। श्रीकृष्ण की लीला भूमि में उस युवा कथावाचक के लिए वह प्रोग्राम थे !
किसी की भावनाएँ आहत हों तो हों, मुझे धार्मिक विषय होने से सत्य कहने में संकोच नहीं करना चाहिए। धर्म के इन धंधेबाजों में मेरी कोई आस्था नहीं है। मैंने जया किशोरी को नहीं सुना है। उनके दर्शन भी नहीं किए हैं। कुछ किताबें पढ़कर, कुछ दार्शनिकों को सुनकर, भजन-कीर्तन के साथ दो घंटे की बकवास इस देश में कोई भी कर सकता है, क्योंकि हजारों वर्षों के समृद्ध इतिहास में इतनी कहानियाँ हैं कि धँधा चमकेगा ही।
बीस लाख के शहर में पचास हजार लोग हर कहीं बिना ढूँढे पांडालों में आकर बैठ जाएँगे। इस भीड़ की फॉलोइंग को देखकर ईवेंट मैनेजमेंट कंपनियाँ, टीवी चैनलों की साठगाँठ से रातों-रात कूड़े हिट बनाने की कूवत रखती हैं। अब तमाशा कॉर्पोरेट लेवल होगा, जिसमें लक्जरी अंतहीन है। आलीशान बंगलां-कोठियों के गृहस्थ जीवन में महँगी कारें, नए मॉडल के मोबाइल, डिजाइनर ड्रेसें, वेनिटी वैन के बाद इन कथाकारों के अगले मंसूबे अपने प्राइवेट प्लेन और याट के हैं, जहाँ लाखों डालर देकर दुनिया का क्लास ऑडिएंस प्रभु श्रीराम के त्याग और श्रीकृष्ण के कर्मयोग पर प्रवचन सुनने लपककर आए।
आर्थिक उदारीकरण के बाद पिछले तीस सालों में ऐसा वर्ग तैयार हुआ है, जो आज अपनी अधेड़ आयु में उतना पा चुका है, जितना उसकी दो पीढ़ियों ने मिलकर नहीं कमाया था। भारत में धर्म का जोर है। और इस अकेली पीढ़ी के धनाढ्यों को पुराने समय के तपस्वी-त्यागियों से तत्वज्ञान सुनने का आनंद जाता रहा है। उन्हें यहाँ भी फाइव स्टार लक्जरी चाहिए। दस कैमरे, क्रेनों पर डोल रहे हों। शानदार सेट हो। म्युजिक और साउंड सिस्टम वर्ल्ड क्लास हो। हर दिन की कथा के लिए ड्रेसें भी शादियों जैसी बनवाई हों और सवा करोड़ की कार से उतरकर सोफों पर टिककर राम के वनवास का आनंद लिया जाए! सेलिब्रिटी कथा वाचकों का आतिथ्य किया जाए। उनके साथ वीडियो और फोटो अपनी खास सामाजिक हैसियत का प्रदर्शन भी करेंगी। क्लब में शाम की बैठकों में अगले चार महीने इसी खुमारी में बीतेंगे।
भारत और पाकिस्तान दो अलग और विपरीत धार्मिक धाराओं में बहने वाले समाज हैं, लेकिन मूलत: उनका डीएनए एक ही है। दोनों तरफ मूर्ख बनने में माहिर लोग पर्याप्त से अधिक हैं। इस्लाम में कन्वर्ट होने के बावजूद वे इस मामले में हमसे अलग नहीं हैं। वहाँ मजहबी जमातों ने जड़ता को जमकर फैलाया हुआ है। मौलाना तारेक जमील और मुफ्ती तारेक मसूद वहाँ की जया किशोरियाँ ही हैं। मजहब के नाम पर विशुद्ध कारोबारी। अंतर केवल इतना है कि उनका मजहबी दर्शन मोमिन-काफिर की नफरती बुनियाद पर फैलता-पनपता है।
भारत की जया किशोरियों के पास सुनाने के लिए कृष्ण और राम की मनोरम लीलाएँ हैं। बस नफरत का बघार यहाँ नहीं मिलेगा। धार्मिक कथाएँ यहाँ मनमोहन देसाई टाइप एक म्युजिकल ड्रामा है। मुफ्तियों और मौलानाओं की मूवी रामसे ब्रदर्स की हिंसक और हॉरर कॉमेडी टाइप मिलेगी। दोनों की जेबें भरने के लिए बेवकूफ चाहिए, जो दोनों ही तरफ कम नहीं हैं। जब तक ये हैं जाकिर नाइकों और जया किशोरियों की दुकानों पर भीड़ कायम रहेगी। किस-किसको आप देश निकाला देंगे ?
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श्री विजय मनोहर तिवारी, वरिष्ठ पत्रकार