18 वीं लोकसभा के चुनाव की प्रक्रिया चल रही है और अब तक तीन चरणों का मतदान हो चुका है. सोमवार, 13 मई को चौथे चरण में 96 संसदीय क्षेत्रों में मतदान होगा. इनमें मध्यप्रदेश के इंदौर संसदीय क्षेत्र भी शामिल है. इंदौर पिछले दिनों कांग्रेस प्रत्याशी द्वारा नाम वापस लिये जाने के बाद सुर्खियों में रहा. अब वहां नोटा को लेकर चर्चाएं हो रही हैं. हालाकि इंदौर में मतदान तो मात्र औपचारिकता ही लग रही है इसलिये नोटा का कोई महत्व नहीं रह जाता है. लेकिन अन्य संसदीय क्षेत्रों में नोटा का उ(दुरू)पयोग करने वाले मतदाताओं संख्या हजारों में हो सकती है. नोटा को लेकर अनेक तर्क दिये जाते हैं. इसी को लेकर डा. रजनीश श्रीवास्तव ने जीवन में अपनी इच्छा नहीं होने पर भी उपलब्ध विकल्प को ही चुनने की बाध्यता को नोटा के साथ जोड़कर यह बताने की कोशिश की है कि चुनाव मैदान में खड़े उम्मीदवारों में से कोई तो बेहतर होगी जिसे हम चुन सकते हैं. बैलेट यूनिट और मानव जीवन में नोटा” आलेख में श्री श्रीवास्तव ने नोटा का बटन दबाने का मन बना चुके मतदाताओं से अपील की है कि वे नोटा का बटन न दबाकर किसी प्रत्याशी के नाम के आगे का बटन दबायें.   

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बैलेट यूनिट और मानव जीवन में नोटा

                                                                                                                      *  डा. रजनीश श्रीवास्तव

 

   अभी देश में लोकसभा चुनाव 2024 के चुनाव चल रहे हैं। तीन चरणों का मतदान हो चुका है।

 

   पहले चुनाव में नोटा का उपयोग नहीं होता था। छपे हुए मतपत्र से चुनाव होते थे। और उसमें नोटा का विकल्प नहीं होता था।

 

   घूमते हुए तीरों की एक सील मतपत्र में लगाने के लिए दी जाती थी। यह सील कभी-कभी कुछ मतदाताओं द्वारा दो उम्मीदवारों के नाम और चुनाव चिन्ह के बीच में लगा दी जाती थी और ऐसे में विवाद की स्थिति बनती थी। घूमते तीर की सील  का अधिक हिस्सा जिस प्रत्याशी के नाम और चुनाव चिन्ह की ओर जा रहा होता था उसे वह मत दिया हुआ मान्य किया जाता था।

 

    कभी कभी कुछ मतदाता  उम्मीदवार के नाम व चिन्ह के स्थान पर बैलेट पेपर प्राप्त करते समय लगाए गए अंगूठा निशानी को ही सील के बजाय मतपत्र पर लगा दिया करते थे।और उनका मत अमान्य हो जाता था।

 

   पीठासीन अधिकारी को यह भी ध्यान रखना होता था कि कहीं मतदाता मत डालने के बाद घूमते हुए तीरों की सील गलती से अपने साथ लेकर ना चला जाए, इसी कारण सामग्री वितरण के समय उसे घूमते हुए तीरों की सील के दो सेट दिए जाते थे।

 

   जब ईवीएम से चुनाव होना शुरू हुए तो उसमें एक बटन नोटा अर्थात नन ऑफ़ द अबव अर्थात उपरोक्त में से कोई नहीं  अर्थात किसी भी अभ्यर्थी को नहीं चुनने का विकल्प दिया गया।

 

    विगत चुनावों में यह देखा गया है कि नोटा को जितने मत मिले हैं उससे कम मतों के अंतर से हार जीत हुई है। अर्थात अगर नोटा को मिले मत किसी हारे हुए प्रत्याशी को मिलते तो वह प्रत्याशी ही निश्चित तौर पर जीत सकता था।

 

   अब देखिए कि जीवन में नोटा का उपयोग कब कब और कौन कौन कर पाता है।

 

1,

    वह व्यक्ति जो नवजात बच्चे के रूप में बिना अपनी मर्जी के किसी भी धर्म या जाति के परिवार में जन्म ले लेता है और बिना उसकी मर्जी के माता, पिता, भाई , बहन और बहुत से रिश्तेदारों नातेदारों से उसका रिश्ता जुड़ जाता है।

 

    मगर कालांतर में वह सबके साथ समान व्यवहार व सम्बन्ध बनाने के बजाय उनमें से कुछ रिश्तेदारों को तुलनात्मक रूप से अच्छा होने के कारण चुन लेता है और उनसे अच्छे संबंध जीवन पर्यन्त रखता है।

 

    मगर नोटा का उपयोग करने का कह कर वह घर छोड़कर जंगल में रहने के लिए यह कह कर नहीं चला जाता है कि उसके आस पास के रिश्तेदार नातेदार और पड़ोसी लोग उसकी पसन्द के नहीं हैं।

 

2,

   वहीं बड़े होने पर शिक्षा प्राप्त करने के लिए जब स्कूल जाना शुरु करता है तो उसे मन माफिक स्कूल या विषय पढ़ाई के लिए किसी कारण से नहीं मिलते हैं। तो वह नोटा का उपयोग करना सोचकर पढ़ाई लिखाई छोड़ नहीं देता, बल्कि उपलब्ध स्कूल या विषयों पर विचार कर तुलनात्मक रूप से अपनी पसन्द के किसी अन्य स्कूल या विषय को लेकर पढ़ाई करता है।

 

3,

   जब वह शिक्षित होकर नौकरी या व्यवसाय के लिए प्रयास करता है तो मन माफिक नौकरी या व्यवसाय ना मिलने पर तुलनात्मक विचार कर दूसरे और तीसरे विकल्प के रूप में किसी अन्य नौकरी या व्यवसाय को चुन लेता है ना कि नोटा के उपयोग का सोचकर दूसरे या तीसरे विकल्प में मिल रही नौकरी और व्यवसाय छोड़कर घर बैठ जाए।

 

4,

   जब उसके विवाह की बात होती है तो सामने आए हुए विवाह के विभिन्न प्रस्तावों पर तुलनात्मक विचार विमर्श कर किसी एक को चुन लेता है और उससे विवाह भी कर लेता है।

 

    उस समय नोटा के उपयोग की बात कह कर  विवाह का विचार त्याग नहीं देता और आजन्म कुंवारा रहने का विचार भी नहीं करता है।

 

5,

   वह जब किसी निमंत्रण में जाता है तो वहां बने हुए भोजन में अपनी पसंद की सब्जी ,पकवान या मिठाइयां आदि नहीं मिलने पर बिना खाना खाए घर नहीं आ जाता, बल्कि यह देखता है कि वहां जो सब्जी और मिठाइयां या अन्य पकवान उपलब्ध हैं, उनमें से तुलनात्मक रूप से अपनी कम पसन्द अनुसार कुछ अन्य चीज लेकर भोजन कर पेट भर लेता है। नोटा का विकल्प चुनकर बिना भोजन किये घर नहीं चला जाता।

 

6,

    मगर जब चुनाव का समय आता है तो उसे यह लगता है कि हमारी पसंद का उम्मीदवार नहीं है इसलिए नोटा के उपयोग का विचार कर यह तय करता है कि हम चुनाव लड़ रहे किसी भी उम्मीदवार को वोट नहीं देंगे।

 

    क्या लोकतंत्र के लिए यह उचित है।

 

  किसी को वोट न देने से क्या होगा, आप यदि अपना अमूल्य मत नहीं देंगे अर्थात नोटा को देंगे तो जो अभ्यर्थी चुनाव लड़ रहे हैं उनमें से जिनको आप बिल्कुल भी पसन्द नहीं करते हैं, वह ही अन्तिम रूप से चुना जा सकता है।

 

   यह बात याद रखें कि नोटा को किसी अभ्यर्थी से अधिक मत मिलने पर द्वितीय स्थान पर मत प्राप्त करने वाले अभ्यर्थी को निर्वाचित घोषित किया जाता है। दोबारा मतदान या चुनाव नहीं होता है।

 

   इसलिए नोटा के बजाय जो अभ्यर्थी चुनाव लड़ रहे हैं उनमें से जो तुलनात्मक रूप से आपकी नजर में कुछ कम अच्छा भी हो तो उसे ही वोट देना चाहिए।

 

   जब जीवन में विभिन्न परिस्थितियों में आपको नोटा का उपयोग करने का अवसर ही नहीं मिला है तो फिर आज नोटा का उपयोग क्यों?

 

   नोटा का उपयोग भूलकर भी नहीं करना चाहिए।

   आइए हम शपथ लें कि इस लोकसभा चुनाव 2024 में और बाद में होने वाले किसी भी चुनाव में हम नोटा का उपयोग नहीं करेंगे और मजबूत लोकतंत्र की स्थापना करेंगे।