आम आदमी के कंधों पर हिंदी के विकास की जिम्मेदारी .........................हिंदी दिवस पर मधुकर पवार का आलेख
आम आदमी के कंधों पर हिंदी के विकास की जिम्मेदारी
- मधुकर पवार
हर साल की तरह इस बार भी 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जा रहा है. केंद्र सरकार के मंत्रालय एवं और कार्यालयों के साथ सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों, निगमों, बैंकों आदि में हिंदी दिवस मनाने की रस्मअदायगी की जा रही है. विभिन्न मंत्रालयों और कार्यालयों में हिंदी में शत - प्रतिशत काम करने के लक्ष्य की समीक्षा की जाएगी. संकल्प लिया जाएगा और गहन चिंतन किया जाएगा कि लक्ष्य को कैसे प्राप्त किया जाए? जिन कार्यालयों में हिंदी में कार्य की समीक्षा संसदीय समिति ने की है उन कमियों को पूरा करने के लिए किए गए प्रयासों पर चर्चा होगी. पीठ भी थपथपाई जाएगी. हिंदी में अधिकाधिक कार्य करने के लिए अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए आयोजित प्रतियोगिता के विजेताओं को पुरस्कार देकर उनसे आशा की जाएगी कि वह इसी तरह हिंदी में काम करें.
भारत बहुभाषी देश है और यहां संविधान की आठवीं अनुसूची में हिंदी, असमिया, बंगाली, गुजराती, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, हिंदी, तमिल, तेलुगू, उर्दू, बोडो, डोगरी, मैथिली और संथाली भाषाओं को मान्यता दी है. अंग्रेजी भाषा को इसमें स्थान नहीं मिला है लेकिन अंग्रेजी देश की राजकाज की सबसे प्रभावी और प्रचलित भाषा है. संसद, उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालय और केंद्र सरकार के मंत्रालयों में मूल काम अंग्रेजी में होता है यानि संविधान की आठवीं अनुसूची में हिंदी सहित सभी भारतीय भाषाओं पर अकेली अंग्रेजी भारी पड़ रही है. हालांकि हिंदी को राजभाषा का दर्जा प्राप्त है लेकिन यह केवल नाम की राजभाषा है. गृह मंत्रालय के अंतर्गत राजभाषा विभाग अस्तित्व में है. संसद में राजभाषा संसदीय समितियां हैं. इनके ऊपर राजभाषा हिंदी के प्रचार प्रसार का दायित्व है लेकिन राजभाषा के विकास के लिए ईमानदारी से काम नहीं हुआ है. यदि इमानदारी से काम किया होता आज उच्च और उच्चतम न्यायालय के साथ संसद सहित सभी मंत्रालयों में मूल काम हिंदी में होता. हिंदी अनुवाद की भाषा बनकर रह गई है.
भारत में हिंदी को राजभाषा का दर्जा तो प्राप्त है लेकिन राष्ट्रभाषा का दर्जा नहीं मिल पाया है. इसके पीछे राजनीतिक कारण और इच्छा शक्ति की कमी भी है. लेकिन हिंदी इस मामले में अन्य भारतीय भाषाओं की तुलना में बेहतर स्थिति में है क्योंकि यह संपर्क भाषा के रूप में विकसित हो गई. इसके लिए सरकारी प्रयासों का योगदान तो मात्र औपचारिकता ही माना जाना चाहिए. सबसे अहम योगदान संचार माध्यमों और रोजगार का रहा है. रोजगार की तलाश में अलग-अलग राज्यों में जाना और वहीं बस जाने से स्थानीय भाषा सीखना मजबूरी हो जाती है. हिंदी भाषी क्षेत्रों में दक्षिण से आए अहिंदी भाषी बड़ी संख्या में निवास कर रहे हैं. वे भले ही आपस में बातचीत में अपनी मातृभाषा का उपयोग करते हैं लेकिन हिंदीभाषियों से भी कामचलाऊ ही नहीं बल्कि अच्छी हिंदी में बात करते हैं. जहां तक संचार माध्यमों का हिंदी के विकास में योगदान की बात है तो इसमें सबसे महत्वपूर्ण फिल्मों का योगदान रहा है. बहुत कम हिंदी जानने और बोलने वाले भी हिंदी फिल्में देखते हैं.
कंप्यूटरीकरण से हिंदी के विकास को थोड़ी गति मिली लेकिन जब से मोबाइल का प्रादुर्भाव हुआ और इंटरनेट की उपलब्धता दूर दराज के क्षेत्रों में तक हो गई है, संचार के क्षेत्र में एक नए युग की शुरुआत हुई. अब मोबाइल फोन प्राय: हर व्यक्ति की आवश्यकता बन गया है. मोबाइल निर्माताओं ने स्थानीय जरूरत के मुताबिक तकनीक का इस्तेमाल करते हुए प्रमुख भाषाओं के साथ मोबाइल उपलब्ध करा दिए हैं. इससे बहुत कम पढ़े लिखे व्यक्ति भी मोबाइल पर आए संदेशों को पढ़ने के साथ संदेश लिखकर भेजने का काम आसानी से करने लगे हैं. कुछ वर्षों से बोलकर लिखने की सुविधा भी मोबाइल पर उपलब्ध हो गई है. इससे न केवल हिंदी बल्कि अन्य भारतीय भाषाओं का भी अपने-अपने राज्यों और क्षेत्रों में अधिकाधिक उपयोग किया जाने लगा है. जबकि पहले रोमन में लिखकर काम चलाना पड़ता था. मोबाइल पर सोशल मीडिया की सुविधा होने के बाद से अब तो सभी भाषाओं के उपयोगकर्ताओं के पास सैकड़ो संदेश हर दिन आते हैं. वे संदेशों को पढ़कर जवाब भी देते हैं. संदेशों के आदान-प्रदान का यह सबसे सस्ता और सुलभ माध्यम हो गया है.
अब जब हम हिंदी के विकास और प्रचार - प्रसार की बात करते हैं तो इसमें सबसे महत्वपूर्ण भूमिका आम आदमी की रही है. आम उपभोक्ताओं की जरूरत का सामान बनाने वाली कंपनियों की मजबूरी हो गई है कि वह उनके उपयोगकर्ताओं और उपभोक्ताओं को उनकी भाषा में संदेश पहुंचाएं. वे ये भी जानते हैं कि मोबाइल और अन्य उत्पादों का उपयोग करने वाली ऐसी बड़ी आबादी है जो इनका उपयोग करना भी ठीक से नहीं जानती. यदि मोबाईल का संचालन केवल अंग्रेजी में किया जाता तो सम्भवत: मोबाइल उद्योग इतनी तेजी से प्रगति नहीं करता. यदि प्रगति हुई है तो इसमें भाषा का भी अहम योगदान है. अब निर्विवाद रूप से माना जा सकता है कि हिंदी के विकास और प्रचार – प्रसार में सरकारी प्रयासों को एक सीमा तक ही सफलता मिली है जब आम जनता तो हिंदी के प्रचार – प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान दे रही है. रही बात समाचार पत्रों की तो... यह सर्वविदित है कि भाषा को लेकर संवेदनशील नहीं हैं. प्रचलित हिंदी के अच्छे शब्दों के स्थान पर जानबूझकर अंग्रेजी के शब्दों का बहुतायत उपयोग किया जा रहा है. इसका सबसे बड़ा नुकसान बच्चों और युवा पीढ़ी को हो रहा है. भारत में भाषा को लेकर समाज, समाचार पत्रों और सरकार का संवेदनशील नहीं होना, भारतीय संस्कृति को नुकसान ही पहुंचाएगा.