शुभम यादव की आंखों से तीन लोगों को मिली रोशनी

भोपाल।  रक्तदान के समान अंगदान को भी महादान कहा जाता है। रक्तदान के बारे में जागरूकता होने के कारण बड़ी संख्या में रक्तदाता रक्तदान करते हैं, रक्तदान के लिए शिविर भी लगाए जाते हैं लेकिन अंगदान के लिये मृतक के परिवारजनों की सहमति आवश्यक होती है। अंगदान, खासतौर से नेत्रदान के बारे में भ्रांतियां हैं कि नेत्र निकालने के बाद चेहरा बदसूरत हो जाता है जबकि ऐसा नहीं है। मृतक की आंखों से पुतली और कार्निया निकालते हैं जिससे चेहरा पहले जैसा ही रहता है।

आज भी लाखों लोग / मरीज नेत्रदान के अभाव में अपने जीवन में उजाला की आशा लगाए प्रतीक्षा कर रहे हैं लेकिन भोपाल के 30 वर्षीय शुभम यादव के परिवारजनों ने शुभम के मरणोपरांत उनकी दोनों आँखों की पुतली भोपाल के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) को दान कर तीन लोगों के जीवन को प्रकाशमय कर दिया है । एम्स भोपाल के नेत्र विज्ञान विभाग ने मृतक शुभम यादव के परिवार के साथ विस्तृत परामर्श किया और नेत्रदान की प्रक्रिया को सफलतापूर्वक संपन्न किया। पहली आँख की पुतली एक 74 वर्षीय मरीज़ को प्रत्यारोपित किया गया, जिनकी आंख की एंडोथेलियल परत एक पुराने ऑपरेशन के दौरान खराब हो गई थी। इस प्रत्यारोपण से उनकी दृष्टि ठीक हो गई और उन्हें सामान्य व्यक्ति जैसे दिखाई देने लगा । पहली आँख की पुतली का दूसरा हिस्सा 16 वर्षीय लड़की को प्रत्यारोपित किया गया जो स्टीवंस-जॉनसन सिंड्रोम से ग्रसित थी। प्रत्यारोपण से बालिका की जिंदगी में एक नई आशा किरण लौट आई। दूसरी आँख की पुतली को 50 वर्षीय पुरुष को लगाया गया, जिनकी आंख बचपन में चोट के कारण सफेद हो गई थी। तीनों ऑपरेशन एम्स भोपाल की समर्पित मेडिकल टीम द्वारा सफलतापूर्वक किए गए जिससे तीनो के जीवन में नई रौशनी का उदय हुआ।

     शुभम यादव के परिवार द्वारा नेत्रदान करने करने को निर्णय जीवन का सच्चा उपहार बताते हुए एम्स भोपाल के कार्यपालक निदीशक प्रो. (डा.) अजय सिंह ने कहा कि दाता परिवार के इस बहुमूल्य योगदान के लिए एम्स भोपाल कृतज्ञता व्यक्त करता है। उनका यह निस्वार्थ कार्य अन्य लोगों को भी नेत्रदान करने के लिए प्रेरित करेगा।

न्यूज़ सोर्स : एम्स भोपाल