आज का चिंतन...... संबंध और मुक्ति
प्रिय पाठकों.... आज से एक नया स्तम्भ " आज का चिंतन " शुरू कर रहे हैं. प्रबुद्ध चिंतक श्री संजय अग्रवाल भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारी हैं और वर्तमान में नागपुर में आयकर विभाग में संंयुक्त आयकर आयुक्त के पद पर कार्यरत हैं. उम्मीद है अपाको यह स्तम्भ पसंद आयेगा..
आज का चिंतन
संबंध और मुक्ति
संबंध बनाए जाते हैं
और रिश्ते अनिवार्य होते हैं।
रिश्तों को निभाना और
संबंधों को बनाए रखना,
इन दोनों में अलग अलग
प्रकार के प्रयासों की
आवश्यकता होती है।
रिश्तों में भूमिका
माता-पिता, परिवार, ऑफिस इत्यादि
जहां हर किसी की अपनी अपनी
भूमिका होती है, वहां हम
अपना किरदार बेहतर ढंग से
निभा पाएं, यही अपेक्षित
और उचित होता है।
दूसरे की अपेक्षा और
व्यवहार पर हमारा कतई
कोई नियंत्रण नहीं होता है
और उसके कारण
स्वयं को दुखी करना
ठीक बात नहीं होती है।
संबंधों में स्वतंत्रता
क्योंकि संबंध हम अपनी
रुचि, सुविधा और पसंद से
बना सकते हैं इसलिए
इसे बनाए रखने या
ना रखने की स्वतंत्रता
सदा हमारे पास होती है।
संबंध बराबरी वालों से ही
बनाए जाते हैं और वही
लंबे समय तक टिकते हैं।
बराबरी अर्थात स्वभाव,
विचारों और उद्देश्य इत्यादि
का तालमेल ही होता है।
मित्रता का संबंध सबसे
गहरा और महत्वपूर्ण होता है।
मुक्ति
रिश्ते हो या संबंध,
इनको निभाने के लिए
क्षमता से पार
चले जाने का प्रयास
स्वयं को कष्ट पहुंचता है
और हमें व्यर्थ की परेशानी
से अनावश्यक ही
लगातार जूझना पड़ता है।
इनको निभाने की सीमा
और तरीकों का आकलन
और निर्णय हमारा
स्वयं का विषय होता है।
उपाय
अपनी समझ को निरंतर
विकसित और परिष्कृत
करते रहने से ही हम
सहज और सरल रहते हुए,
अपने आत्मविश्वास
और दृढ़ता से,
रिश्तों और संबंधों को
समुचित रूप से
निभाते हुए इनके
अस्वीकार्य बंधनों से
मुक्ति पा सकते हैं।
संजय अग्रवाल
सम्पर्क संवाद सृजन
गुरुवार 08/08/2024
नागपुर
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