स्वतंत्रता दिवस पर विशेष

 जब बापू ने स्वयं अपने नाम के आगे " महात्मा " लिखा

                                               

नाम मात्र की धनराशि तीस रूपये के यह एक क्रास चेक की कहानी है जिसमें राष्ट्रपिता ने स्वयं को " महात्मा " के रूप में सम्बोधित किया और " महात्मा गांधी " के नाम से हस्ताक्षर कर उसे कैश होने के लिए दिया। उल्लेखनीय है कि जीवन पर्यन्त गांधी जी ने कभी अपने को " महात्मा " नही माना, न समझा और न उस विश्लेषण का व्यवहार स्वयं के लिए अपने जीवन में कभी किया। पत्र व्यवहार यदि हिन्दी में हुआ तो " मो.क.गांधी " अथवा " बापू के आशीर्वाद " ही पर्याप्त समझे गये अन्यथा अंग्रेजी में तो " एम.के.गांधी " सदैव प्रचलित रहा।

इस प्रकार यह चेक अपने आप में  निराला है, उसका अपना एक अलग और अनूठा इतिहास है और वह स्वयं अपने आप में एक छोटी सी कहानी तथा गांधी जी के जीवन वृत का एक अध्याय बन गया है। राष्ट्रपिता बापू हरिजनो तथा दलितों के उद्धारविकास व कल्याण के लिए मुक्त हस्त से ,यथाशक्ति धन देने की अपील कर रहे थे और गांधी जी की इस अपील का काफी अनुकूल प्रभाव उस समय देशवासियों पर पड़ रहा था। भारत की राष्ट्रीय मनोवृत्ति के प्रमुख पत्रकार और मेरे पूज्य पितामह श्री हुक्म चंद जी नारद ने राष्ट्रपिता द्वारा की गई हरिजन फंड की अपील पर अपने सीमित दायरों और आर्थिक स्थिती को ध्यान में रखते हुए 30 रूपए का एक क्रास चेक श्रद्धा प्रसून  स्वरूप उनको दे दिया। तीस रूपए का यह चेक  तत्कालीन भारत बैंक लिमिटेड की जबलपुर शाखा से 7 जनवरी 1945 को महात्मा गांधी के नाम से काटा गया था जिस पर नम्बर  D 1/ 526365 अंकित था। जब यह क्रास चेक भुगतान होने के लिए " द बैंक आफ नागपुर " की वर्धा शाखा के पास पंहुचा तो बैंक ने उसे स्वीकार करने से इंकार कर दिया। क्रास चेक पर गांधी जी ने एम.के. गांधी हस्ताक्षर कर पुनः बैंक के पास भेजा तब इस पर बैंक ने यह कहकर लौटा दिया कि " चेक महात्मा गांधी के नाम का है इसलिए दस्तखत महात्मा गांधी होना चाहिए " । बैंकिंग के कठोर नियमों से परास्त महात्मा गांधी को बरबस चेक के पीछे " महात्मा गांधी " लिखना पड़ा । संभवतः यह पहली और आखिरी घटना है जब अपने ही हांथ से, अपने लिएगांधी जी को महात्मा शब्द से सम्बोधित करना पड़ा। बैंक अधिकारियों से जब सम्पर्क स्थापित किया गया तो पता चला कि बैंक में  " एम.के.गांधी " अथवा "  महात्मा गांधी " के नाम से कोई खाता ही नही है। अखिल भारतीय हरिजन फंड के नाम से जरूर एक खाता खुला है। हरिजनो के कल्याण के लिए दिन रात चिंतित रहने वाले और कृपण की तरह उनके उद्धार और विकास के लिए एक एक पाई जोड़ने वाले बापू के पास जब यह तीस रूपए का चेक वर्धा स्थित बैंक आफ नागपुर के द्वारा वापस पहुंचा तो गांधी जी ने यह क्रास चेक उसके प्रेषक स्वर्गीय श्री हुक्म चंद नारद को वापस जबलपुर भेज दिया। इस क्रास चेक के साथ गांधी जी के व्यक्तिगत सचिव श्री प्यारेलाल जी का एक विस्तृत पत्र श्री नारद जी को प्राप्त हुआ जिसमें उन्होने विस्तार से बताया था कि तीस रूपए के उक्त चेक का भुगतान क्यों नही हो सका। श्री प्यारेलाल जी ने उस पत्र में लिखा था कि नारद जी उतनी ही धनराशि का दूसरा चेक आल इंडिया हरिजन फंड के नाम से काट देंजिसके की नाम का एकाउंट वर्धा स्थित द बैंक आफ नागपुर में खुला हुआ है। श्री हुक्म चंद नारद ने श्री प्यारेलाल जी के द्वारा प्रेषित की गई बापू की उस सलाह का पालन किया। संयोग से कुछ ऐसा ही है अब इस दुनिया में न तो उस क्रास चेक को पाने वाले गांधी जी रहे और न उस चेक को जारी करने वाले मेरे पितामह स्वर्गीय श्री हुक्म चंद जी नारद।

 

डा. संदीप नारद

260 AA, तुलसी नगर,

सरस्वती मंदिर के पास,

इंदौर मध्यप्रदेश 452010