महाराज दशरथ का श्राद्ध सीताजी ने क्यों किया ?
महाराज दशरथ का श्राद्ध सीताजी ने क्यों किया ?
- कमल किशोर दुबे
फलगू नदी में जल प्रवाह ऊपर क्यों नहीं होता? वह अंत:सलिला क्यों बनी ?
गया जी में तुलसी क्यों नहीं उगती ?
गाय भक्ष्य, अभक्ष्य क्यों खाती है ?
ब्राह्मण दान पाकर भी संतुष्ट क्यों नहीं होता ?
पुत्री और पुत्रवधू को भी श्राद्ध का अधिकार किसने दिया ?
यह ऐसे ही पाँच ज्वलंत प्रश्न हैं, जिनके उत्तर पाना हर व्यक्ति की जिज्ञासा हो सकती है।
सामान्यतः पितृपक्ष में अपने पितरों का श्राद्ध करने का अधिकार केवल पुरुषों को ही होता है स्त्रियों को नहीं।
इसका अपवाद है सीता जी द्वारा अपने श्वसुर महाराज दशरथ का श्राद्ध किया जाना।
फलगू नदी गाय, तुलसी और ब्राह्मण को शापित करने की कथा भी अद्भुत है । आवश्यकता है इस कथा के पीछे छिपे रहस्य और महत् उद्देश्य को समझने की।
रामायण में यह प्रसंग वर्णित है कि जब श्री राम लक्ष्मण और सीता सहित चौदह वर्ष को वन में चले गये तो महाराज दशरथ ने भी पुत्र वियोग में प्राण त्याग दिये । भरत जी चित्रकूट में श्रीराम से मिलने आये और उन्हें पिता की मृत्यु का समाचार दिया तो वह बहुत दुखी हुए । बाद में अपने पिता का श्राद्ध करने के लिये पितृपक्ष में वह स्वयं लक्ष्मण और सीता जी के साथ पिंडदान करने के लिये गया जी गये । अपने पिता महाराज दशरथ का श्राद्ध करने के लिये श्राद्ध कराने वाले पंडित द्वारा पिंडदान के लिए बतायी गई सामग्री लेने के लिये फलगू नदी में स्नान करने के पश्चात श्रीराम, लक्ष्मण के साथ बाजार गये। श्रीराम बाहर ठहर गए और लक्ष्मण को दुकानों से सामान खरीदने में बहुत अधिक समय लग गया । श्राद्ध करने का भी एक विशेष मुहूर्त "मध्यान्ह काल" होता है । जिस समय यमलोक से मृत आत्माओं को कुछ समय के लिये ही पृथ्वी पर आने की अनुमति होती है । सीता जी स्नान कर फलगू नदी के तट पर बैठी अपने पति और लक्ष्मण की प्रतीक्षा कर रही थीं । तभी उनके पास महाराज दशरथ आये और सीता जी से कहा कि मेरा श्रद्धा पूर्वक श्राद्ध करके पिंडदान दे दो जिसे लेकर मैं जाऊँ । सीता जी ने कहा- पिताजी, श्राद्ध और पिंडदान का अधिकार तो पुत्र का होता है, और आपके दोनों पुत्र आवश्यक सामग्री लेने गये हैं । तब तक आप प्रतीक्षा कीजिये । महारज दशरथ ने कहा - "हम मृत आत्माओं को यमलोक से आने के लिये कुछ ही समय मिलता है इसीलिए उसका निश्चित मुहूर्त होता है।" अतः मैं अधिक प्रतीक्षा नहीं कर सकता। इस समय तुम्हारे पास जो भी हो वही श्रद्धापूर्वक मेरे हाथ पर रखकर मुझसे आशीर्वाद प्राप्त करो । पुत्र की अनुपस्थिति में बहू और बेटी दोनों को ही पिंडदान का अधिकार है। दशरथ जी के कहने पर सीता जी ने उस समय उपलब्ध फलगू नदी की रेत से ही पिंड बनाकर फलगु नदी, गाय, तुलसी, वट वृक्ष एवं ब्राह्मण के साक्ष्य में महाराज दशरथ के हाथ में श्रद्धा पूर्वक प्रदान किये। जिससे महाराज दशरथ की आत्मा सीता जी के पिंड को पाकर, खाकर, तृप्त होकर उन्हें आशीर्वाद देती हुई यम लोक से मुक्त हो स्वर्गलोक को चली गई । इधर जब राम-लक्ष्मण बाजार से सामग्री लेकर आये और महाराज दशरथ जी का श्राद्ध करने पर भी जब वह नहीं आये तो उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ । त्रेतायुग में मृत आत्माएँ प्रत्यक्ष उपस्थित होकर पिंड दान लेकर यम लोक से मुक्त हो जाती थीं । जब श्रीराम ने सीताजी से मृतात्मा के नहीं आने की बात कही तब सीताजी ने उन्हें पूरा विवरण सुनाया और कहा कि वह आये थे और पिंड प्राप्त कर के चले गए। इसके पाँच साक्ष्य मौजूद हैं जिनके समक्ष मैंने रेत के पिंड बनाकर ही उन्हें दिये । उस समय मेरे पास और कोई सामग्री उपलब्ध नहीं थी और मुहूर्त निकला जा रहा था । सीताजी ने साक्ष्य के रूप में फलगू नदी से कहा तो फलगु नदी ने मना कर दिया । यह देख सीता जी ने क्रोध में आकर पवित्र फलगू नदी को झूठ बोलने के लिये दंडित करते हुये कहा कि आज से तुम अंत:सलिला होकर ही बहोगी। तब से फलगू नदी में जल प्रवाह रेत के नीचे-नीचे ही होता है। श्राद्ध करने वालों को वहाँ रेत में गड्ढा खोदकर जल निकालना पड़ता है। गाय ने भी अच्छे भोजन के लालच में झूठ बोला तो सीता जी ने उसे भी श्राप देते हुये कहा कि आज से तुम भक्ष्य-अभक्ष्य सभी कुछ भक्षण करोगी । इसी प्रकार तुलसी जी ने भगवान राम का सानिध्य पाने के लिये झूठ बोला तो उन्हें सीताजी के शाप का शिकार होना पड़ा कि "आज से तुम गया जी में नहीं रहोगी"। अब बारी आयी ब्राह्मण की, तो उसने अधिक दक्षिणा पाने के लालच में झूठ बोला। सीता जी ने उसे भी शाप देते हुये कहा - "तुम्हें कभी संतुष्टि नहीं होगी, हमेशा भीख ही माँगते रहोगे। अंत में वट वृक्ष ने सीताजी का साथ देते हुये कहा कि "महाराज दशरथ आये थे और तृप्त होकर आशीर्वाद देकर चले गये । सीताजी ने वट वृक्ष को आशीर्वाद देते हुये कहा - "तुमने सत्य का साथ दिया है अत: आज से तुम्हारे नीचे बैठकर जो पिंडदान करेगा उसे अपने पितरों का आशीर्वाद अवश्य प्राप्त होगा।"
संसार में प्रत्येक कार्य करने का समय निर्धारित होता है। उसे उसी समय पर ही किया जाना चाहिये तभी उसका फल मिलता है। यही तो मुहूर्त की अपनी विशेषता है। स्वयं भगवान राम को भी मुहूर्त निकल जाने के बाद उस अनुष्ठान को करने का फल नहीं मिला। यह पौराणिक घटना इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। तबसे आज तक फलगू नदी, गाय, तुलसी और वहाँ के ब्राह्मण इस शाप को भुगत रहे हैं । इससे यह प्रमाणित होता है कि सत्य की अवहेलना कर लालचवश झूठ बोलना कभी शुभफलदायी नहीं होता ।
*********************
कमल किशोर दुबे, पश्चिम मध्य रेलवे के सेवानिवृत्त वरिष्ठ जनसम्पर्क अधिकारी हैं. कहानी, कविता, व्यंग्य, आध्यात्मिक लेख और समसामयिक विषयों पर निरंतर लेखन कर रहे हैं ।