आपका दिन शुभ हो... मंगलमय हो...

 

 

 

 

 

आज का चिंतन

                                                  * संजय अग्रवाल

 

मैं तो ऐसा ही.

 

कभी कोई बोलता है कि 

मैं तो ऐसा ही सोचता हूं या 

मैं तो ऐसा ही बोलता हूं या 

मैं तो ऐसा ही करता हूं...

तो लगता है कि क्या यह व्यक्ति 

केवल आत्म केंद्रित 

और आत्म मुग्ध ही है 

और इसे दूसरे की 

इच्छाओं, भावनाओं, विचारों

अपेक्षाओं और समझ इत्यादि 

का कतई कोई महत्व नहीं है।

 

पहले आप

यह लखनवी तहजीब कहें 

या हमारी सभ्यता कि हम 

दूसरों को प्राथमिकता देते हैं 

और उन्हें पूरी तरह सुनकर

सब कुछ जान कर

समझ कर ही 

अपनी बात रखना उचित 

और श्रेयस्कर समझते हैं।

 

भूल और नासमझी 

दूसरों को नहीं सुनकर,

केवल अपने को या 

केवल अपनी बातों को ही 

आगे रखने से, दूसरे की 

सही बात को समझने में 

हमसे भूल हो सकती है या 

सत्य को जानने से 

हम वंचित हो सकते हैं या 

गलत बात या व्यवहार करने 

की नासमझी हमसे हो सकती है।

 

उचित और आवश्यक 

यह आवश्यक होता है कि 

पहले हम दूसरे को पूरी तरह 

सुनें, समझें, जानें और फिर 

संदर्भ सहित, सारगर्भित 

और सार्थक बात रख सकें

यही उचित होता है।

 

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  •  श्री संजय अग्रवाल आयकर विभाग, नागपुर में संयुक्त आयकर आयुक्त हैं. वे हमेशा लोगों से सम्पर्क और संवाद करने के लिये इच्छुक रहते हैं इसीलिए वे संपर्क, संवाद और सृजन में सबसे अधिक विश्वास करते हैं  मानवीय मूल्यों और सम्बंधों के सूक्ष्म विश्लेषण के चितेरे श्री अग्रवाल "आज का चिंतन" नियमित रूप से लिख रहे हैं