मध्यप्रदेश सरकार की सराहनीय पहल :

गुड़ी पाड़वा को सृष्टि का आरंभ दिवस के

रूप में मनाने का निर्णय यथोचित !

 

  •  बालाराम परमार 'हॅंसमुख

 

   भारत भूमि पर काल गणना से संबंधित जितने भी संवत् की जानकारी मिलती हैं, वे सब गुड़ी पड़वा से प्रारंभ माने जाते हैं। जब विक्रम संवत प्रारंभ नहीं हुआ था तब युधिष्ठिर संवत, कलियुग संवत और सप्तर्षि संवत प्रचलित थे। सप्तर्षि संवत की शुरुआत 3076 ईसवी पूर्व हुई थी जबकि कलियुग संवत की शुरुआत 3102 ईसवी पूर्व मानी जाती है । इसी दौरान युधिष्ठिर संवत भी प्रारंभ हुआ था। सभी संवत की शुरुआत चैत्र प्रतिप‍दा से ही होती है। परंतु काल गणना से संबंधित बहुत सारे तथ्यों का स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता था। 

     विक्रम संवत में वार, नक्षत्र और तिथियों का स्पष्‍टिकरण किया गया है। इसमें पंचांग सम्बंधित सही - सही काल गणना के साथ ही बृहस्पति वर्ष की गणना को भी शामिल किया गया है।

     इतिहास में राजा विक्रमादित्य को न्यायप्रिय और अपनी प्रजा के हित को ध्यान में रखने वाले शासक के रूप में जाना जाता है। विक्रमादित्य के काल में मालवा सहित भारत के कई हिस्सों के बड़े भू-भाग पर विदेशी शकों का शासन हुआ करता था। शक शासक अत्यंत क्रूर प्रवृत्ति के थे। अपनी प्रजा को सदैव कष्ट दिया करते थे। राजा विक्रमादित्य ने सबसे पहले अवंतिका राज्य के आसपास के शक शासकों से युद्ध लड़े और उन्हें पराजित किया। फिर एक के बाद एक से संपूर्ण भारत को शकों के अत्याचारों वाले शासन से मुक्त करके अपना शासन स्थापित किया और जनता को भय मुक्त जीवन दिया। 

    शकों पर विजय स्मृति के रूप में राजा विक्रमादित्य ने विक्रम संवत पंचांग का निर्माण करवाया था। इस समय 'विक्रम संवत 2081' चल है। यह अंग्रेजी केलेंडर के वर्ष से 57 वर्ष आगे है और इसे नेपाल में भी मान्यता मिली हुई है।

      

          अंग्रेजी केलेंडर से 78 साल बाद शक संवत का आरम्भ हुआ है और आजकल 1945 शक संवत चल रहा है। दुर्भाग्यवश से वर्तमान में भारत का राष्ट्रीय संवत शक माना जाता है।

शक संवत को भारत में शासकीय मान्यता 1957 में मिली थी, जब कैलेंडर सुधार समिति ने इसे भारतीय पंचांग और समुद्री पंचांग के हिस्से के रूप में पेश किया था। यह फैसला तात्कालिक प्रसिद्ध खगोल वैज्ञानिक डॉ. मेघनाद साहा की अध्यक्षता में लिया गया था। भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने एक एकीकृत कैलेंडर की आवश्यकता व्यक्त की थी, जो देश में पिछले राजनीतिक विभाजन का प्रतिनिधित्व नहीं करता हो। इसके लिए समिति ने देश के विभिन्न हिस्सों में प्रचलित बड़ी संख्या में कैलेंडरिंग सिस्टम की जांच की और शक कैलेंडर को राष्ट्रीय कैलेंडर के लिए सर्वश्रेष्ठ कैलेंडर के रूप में मान्य किया गया। शक कैलेंडर का  आधिकारिक उपयोग 22 मार्च 1957 अर्थात चैत्र 1, 1879 से शक युग के रूप में शुरू कर दिया था । 

         विक्रम संवत् का आरंभ 57 ईस्वी पूर्व में उज्जैन के राजा विक्रमादित्य के नाम पर हुआ था। विक्रम संवत के प्रवर्तन की पुष्टि ज्योतिर्विदाभरण ग्रंथ से होती है, जो 34 ईसा पूर्व में लिखा गया था। इसके अलावा तीसरी सदी के बरनाला के स्तम्भ जिस पर अंकित लेख से भी यह  स्पष्ट होता है कि विक्रम संवत गुड़ी पड़वा के दिन से शुरू होता है।

 

गुड़ी पड़वा से जुड़ी दो और कथाएं एवं मान्यताएं प्रचलित है। इन्हीं का जिक्र यहां प्रासंगिक है।  

दूसरी के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि गुड़ी पड़वा के दिन ही भगवान ब्रह्मा ने इस समूचे ब्रह्मांड का निर्माण किया था। यह निर्माण सफल होने के बाद ब्रह्मा जी ने विजय का उद्घोष के रूप में गुड़ी फहराई, इसलिए गुड़ी को ब्रह्म ध्वज भी कहा जाता है।

       गुड़ी पड़वा पर्व भगवान राम से जुड़ा हुआ है। ऐसी मान्यता है कि त्रेता युग में भारत के दक्षिणी राज्यों पर सुग्रीव का भाई बाली राज करता था। दरअसल वो राज्य सुग्रीव का था, परंतु बाली ने उसे छल पूर्वक छीन लिया था। इतना ही नहीं, बाली ने सुग्रीव की पत्नी का भी अपहरण कर लिया था। ऐसे में राम के वनवास के बाद जब सीता का हरण हुआ और वो उनकी तलाश में दक्षिण भारत पहुंचे, तो सुग्रीव ने अपने भाई के अत्याचारों के बारे में बताया और भगवान से सहायता मांगी। सुग्रीव की विनती सुन कर भगवान राम ने बाली का वध कर दिया और सुग्रीव का राज्य उसे वापस मिल गया। माना जाता है कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही भगवान राम ने बाली का वध किया था। तब से हर वर्ष दुष्ट बाली के वध और सुग्रीव की विजय की याद में गुड़ी पड़वा का यह पर्व मनाया जाता है, और विजय पताका के रूप में गुड़ी लगाई जाती है।

          गुड़ी पड़वा से संबंधित एक कथा इस प्रकार भी है कि सातवाहन राजवंश में शालिवाहन नामक एक अत्यंत प्रतापी राजा हुए। लेकिन जब वो बालक थे, तभी उनके पिता का राज्य उनके सामंतों द्वारा छीन लिया गया था। इतना ही नहीं, सामंतों ने उनके परिवार पर आक्रमण कर दिया और शालिवाहन का वध करने का प्रयास किया। तब कुमार शालिवाहन अपने प्राणों की रक्षा हेतु वहां से भाग गए और एक जंगल में किसी कुम्हार के घर जा पहुंचे। कुम्हार ने अपने घर में शालिवाहन को आश्रय दिया और उनका पालन पोषण किया। क्योंकि शालिवाहन का लालन-पालन एक कुम्हार के घर हुआ था, इस कारण उन्हें लोग कुम्हार मानने लगे। हालांकि वो क्षत्रिय कुल में जन्मे थे। कहते हैं कि शालिवाहन को देवताओं से वरदान प्राप्त था कि वह किसी निर्जीव मूर्ति में प्राण डाल सकते थे। धीरे-धीरे कुछ समय बीता और एक दिन ऐसा आया जब शालिवाहन को यह पता चला कि वो एक राजसी परिवार से संबंध रखते हैं और उन्हें यह भी ज्ञात हुआ कि किस तरह से सामंतों ने उनका सारा राजपाट हड़प लिया और वो एक कुम्हार के घर जीवन व्यतीत करने पर विवश हुए।

     यह सब जानने के बाद शालिवाहन ने सामंतों पर आक्रमण करने का संकल्प लिया। शालिवाहन ने संकल्प तो ले लिया, परंतु युद्ध लड़ने के लिए उनके पास ना तो धन था और ना ही सेना थी। तब उन्हें स्वयं को प्राप्त वरदान का बोध हुआ, और उन्होंने मिट्टी की सेना बनाई। युद्ध का समय आने पर शालिवाहन ने मिट्टी की सेना पर पानी के छीटें डालकर उन्हें जीवित कर दिया और युद्ध जीतकर अपना राज्य पुन: प्राप्त किया। तबसे भी भारत में लोग शालिवाहन की विजय के उपलक्ष्य में गुड़ी पड़वा का ये पर्व मनाते हैं।

      तभी से हिन्दू पंचांग अनुसार चैत्र महीने की शुक्ल प्रतिपदा तिथि से हिन्दू नववर्ष का प्रारंभ माना जाता रहा है। 

      आगामी चैत्र मास के शुक्ल पक्ष 30 मार्च 2025 से मध्यप्रदेश सरकार ने 'सृष्टि आरंभ दिवस' के रूप में मनाने का निर्णय लिया है। क्योंकि गुड़ी पड़वा हिंदू नव वर्ष की शुरुआत का प्रतीक है । इस दिन को वसंत के आगमन और रबी फसलों की कटाई का प्रतीक माना जाता है । हिन्दू धर्म में ऐसी मान्यता है कि इस दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की गई थी। इसलिए यह दिन शुभ माना जाता है । गुड़ी पाडवा मुख्य रूप से मध्यप्रदेश , महाराष्ट्र , गोवा, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में धूमधाम व श्रद्धा से मनाया जाता है। कर्नाटक, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में इसे उगादीके रूप में मनाया जाता है। गुड़ी पड़वा के दिन ब्रह्मा, विष्णु  और भगवान राम की पूजा की जाती है। गुड़ी की स्थापना के बाद लोग अपने घरों में हवन और पूजा-अर्चना करते हैं। नीम, गुड़, और खास व्यंजनों का सेवन किया जाता है। इसे नई शुरुआत, विजय और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। यह पर्व भगवान राम की लंका पर विजय और छत्रपति शिवाजी महाराज की विजयों का भी स्मरण कराता है। 

       मध्यप्रदेश सरकार ने आगामी वर्ष 2025 से गुड़ी पाड़वा के शुभ अवसर पर सृष्टि आरंभ दिवस मनाने का संकल्प लिया है। ताकि देश व प्रदेशवासियों को अपने जीवन में नई शुरुआत करने और सकारात्मक ऊर्जा के साथ आगे बढ़ने का अवसर प्राप्त हो सके।

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