लखनऊ । सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एक व्यक्ति जिसे प्राथमिकी में आरोपी के रूप में नामित नहीं किया गया है, वह किसी आपराधिक मामले में किसी अन्य व्यक्ति से संबंधित कार्यवाही को रद्द करने का अनुरोध नहीं कर सकता है। जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस सी टी रविकुमार की पीठ ने यूपीपीसीएल भविष्य निधि निवेश घोटाले के संबंध मे लखनऊ के हजरतगंज पुलिस थाने में दर्ज एक प्राथमिकी को रद्द करने के अनुरोध संबंधी याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। इस मामले की जांच शुरुआत में उत्तर प्रदेश पुलिस ने की थी, लेकिन बाद में इसे केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को स्थानांतरित कर दिया गया था। पीठ ने कहा, 'यह विवाद नहीं है कि याचिकाकर्ताओं को उक्त अपराध में आरोपी के रूप में नामित नहीं किया गया है। यदि याचिकाकर्ताओं को उक्त अपराध में आरोपी के रूप में नामित नहीं किया गया है, तो उक्त अपराध से संबंधित कथित प्राथमिकी या मामले को रद्द करने का प्रश्न ही नहीं उठता। पीठ ने अपने हाल के आदेश में कहा कि अदालत हुकुम चंद गर्ग और अन्य द्वारा मांगी गई राहत के अनुरोध की जांच करने का इरादा नहीं रखती है। पीठ ने कहा कि वे उचित उपाय का सहारा ले सकते हैं। हालांकि, पीठ ने कहा कि सीबीआई के जांच अधिकारी याचिकाकर्ताओं के खिलाफ कार्रवाई करने से पहले उन्हें 48 घंटे का अग्रिम नोटिस देंगे ताकि वे उचित उपाय का सहारा ले सकें। पीठ ने कहा कि इससे पहले एक मौके पर, अदालत ने गौर किया था कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ 'लुकआउट नोटिस' जारी किया गया था। पीठ ने कहा, 'अब यह स्पष्ट किया जाता है कि उक्त लुकआउट नोटिस उस समय अपराध की जांच कर रही स्थानीय पुलिस (उप्र पुलिस) द्वारा जारी किया गया था, जो नोटिस समय बीतने के साथ समाप्त हो गया है।' उत्तर प्रदेश पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड (यूपीपीसीएल) भविष्य निधि निवेश घोटाले के संबंध में प्राथमिकी लखनऊ के हजरतगंज पुलिस थाने में दर्ज की गई थी और उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा इसकी जांच की गई थी।